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Saturday, September 15, 2012

BARFI!





3.5 (Three & Half Star)
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कहते हैं कि प्रयास अच्छा हो तो भगवान भी साथ देते है और हुआ भी वही की एक खूबसूरत फिल्म की शुरुआत में आपको तलाश का ट्रेलर देखने को मिलेगा तो जैसा की राज खुल चुका है जी हाँ बर्फी एक देखने योग्य फिल्म है

बर्फी (रनबीर कपूर) जो बोल और सुन नहीं सकता और जिसे देख कर चार्ली चैप्लिन और राजकपूर की याद आती है, दार्जिलिंग में अपने पिता के साथ रहता है कलकत्ता से आयी हुए एक लड़की श्रुति (इलीना डीक्रूज) जिसको देखते ही बर्फी उससे अपने प्यार का इज़हार करता है, थोड़ा इनकार के बाद (शायद इसलिए क्युकी श्रुती की सगाई हो चुकी है और जल्दी ही शादी होने वाली है) श्रुती भी बर्फी से प्यार करने लगती है लेकिन श्रुति अपनी माँ के समझाने और हिम्मत ना होने कि वजह से बर्फी का साथ छोड़ शादी कर लेती है इधर बर्फी को अपना प्यार उसके बचपन कि दोस्त झिलमिल (प्रियंका चोपड़ा) में मिलता है जो ऑटिस्टिक है फिल्म बर्फी और झिलमिल के स्वार्थहीन प्यार कि कहानी है, जहां भावनाएं ही महत्वपूर्ण हैं इस कहानी के पीछे एक और कहानी भी है, जहां झिलमिल का किडनैप हो गया है

जहां तक फिल्म की स्क्रिप्ट का सवाल है फिल्म आप को बाँध के रखती है फिल्म का नायक जो बोल नहीं सकता वो कही भी अपनी बात को कह नहीं पाया ऐसा नहीं लगता, कही कही तो ऐसा लगता है कि ना बोल पाना ही शायद अपनी बात को पूरी संवेदना के साथ बता पाने कि क्षमता देता है फिल्म शुरू से ही नायक के माध्यम से आप को हँसाना और गुदगुदाना शुरू कर देती है, बर्फी आप का अपना है वो ऐसा है जिसकी गलतियां बार बार माफ की जा सकती हों फिल्म के दो मुख्य पात्र असामान्य रूप से किसी बीमारी या लाचारी से ग्रस्त हैं फिर भी फिल्म में रिश्ते और संवेदनाए ही मुख्य है और बीमारी कही भी आगे नही आती फिल्म की रफ़्तार जैसे ही थोड़ा धीमी पड़ती है सही समय पर मध्यांतर आ जाता है फिल्म में कई सारे बेहतरीन सीन है चाहे वो घडी पीछे करना हो, प्रियंका-रणबीर या रनबीर-इलीना के सीन हो या आखिरी सीन हो
फिल्म का लुक बेहद खूबसूरत है, लोकेशन बहुत अच्छे हैं
वही कुछ बाते ऐसी है जैसे बर्फी की मदद के लिए श्रुति का घर छोड़ देना, झिलमिल से बर्फी के इतने लगाव की वजह साफ़ ना होना, (और श्रुति से भी) या श्रुती से शुरू में इतना लगाव होने पर भी बाद में उसके लिए कोई भावना ना होना, ये सवाल पैदा करती हैं
प्रियंका चोपडा का रोल शायद उनके प्रियंका चोपडा होने कि वजह से थोड़ा खींचा गया लगता और इसी वजह से ना सिर्फ फिल्म धीमी होती है, और कही पर थोड़ा उबाऊ भी होती है और इलीना का कैरेक्टर जिसे थोड़ा और स्थापित किये जाने कि जरूरत थी वो हो नहीं पाया

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है और रवि वर्मन ने हर एक फ्रेम को खूबसूरत बनाया है फिल्म का लुक सत्तर के दशक का ही लगता है प्रीतम का संगीत फिल्म को और बेहतर बनाता है

निर्देशक अनुराग बासु मानवीय संवेदनाओं को उभारने में हमेशा से माहिर रहे हैं और इस फिल्म में उन्होंने ऊंचाईयों को छुआ है उन्होंने फिल्म के हर पहलू को संभाला है
प्रतिकूल परिस्थितियों में प्यार को बढते दिखाना अनुराग कि खासियत रही है
मेरे मुताबिक़ ये फिल्म संजय लीला भंसाली को जरूर देखना चाहिए

रनबीर कपूर फिल्म दर फिल्म खुद को स्थापित करते जा रहे हैं जहां उनके पात्र में चैप्लिन और राजकपूर कि झलक दिखती है वही रनबीर ने खुद को इनकी नक़ल करे जाने के इलज़ाम से कोसो दूर रखा है, यहाँ तक कि उन्होंने निश्चित तौर से अपने अभिनय में खुद के ही रंग डाले हैं
प्रियंका चोपड़ा के अभिनय कि तारीफ़ करनी होगी, ज्यादा इसलिए कि उन्होंने कुछ ज्यादा करने कि कोशिश नहीं की अलबत्ता वो कहीं कहीं हाँथ से बाहर जाती दिख रही थी, लेकिन यही निर्देशक का कमाल है कि उन्होंने प्रियंका को सीमा में ही रखा
इलीना कि ये पहली हिंदी फिल्म है लेकिन वो दक्षिण भारत की स्थापित अभिनेत्री है और इस फिल्म कि सूत्रधार भी उनमे एक ताजगी नज़र आई और उनका रोल उनके अच्छे लगने कि सीमा के अंदर ही है
सौरभ शुक्ला ने नियाहत ही उम्दा काम किया है वो नायक के खिलाफ हैं लेकिन सहानुभूती उनके चेहरे पर है

कुल मिलाकर बर्फी एक ना छोड़े जाने वाली फिल्म है और इसे देखने की कई वजहे हैं
बर्फी आप को, आप सब को मुस्कान के साथ ही घर भेजेगा

3.5 (Three & Half Star)
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 एक नज़र इस पे भी... 

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