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Sunday, December 23, 2012

DABANGG 2




एक डॉलर के अगर 50 रूपए मिलते हों फिर भी 51 रूपए एक डॉलर से ज्यादा होंगे । कहने का मतलब ये है की अगर आप चाहते हैं कि आपकी फिल्म डॉलर से भी ज्यादा कमाई करे तो फिर सिनेमा, सिंगल स्क्रीन जाने वाले दर्शकों के लिए ही बनाना होगा वो भी चुलबुल पांडे (सलमान खान) के साथ।


एक फिल्म की कहानी लिखना शायद कम मेहनत का काम होगा बनिस्पत किसी दबंग जैसी फिल्म में कहानी ढूँढना। चुलबुल पांडे का तबादला लाल गंज से कानपुर हो चुका है। अब दबंग पांडे-2 सबकुछ वैसा ही करेंगे जैसा उन्होंने दबंग में किया था। अगर पिछली 2 लाईन्स को आप कहानी मानने को तैयार हैं तो बस यही है कहानी।

फिल्म की पठकथा और निर्देशन के विषय में ये कहा जा सकता है कि, ऐसा कुछ समझने के लिए आप को पास के सिंगल स्क्रीन थियेटर जाना होगा, और दुसरा ये कि जिस टैक्सी से मैं थियेटर गया उस टैक्सी वाले ने फिल्म मुझसे पहले ही देख रखी थी। उसका कहना है कि साहब .. हीरो है तो बस "भाई"।

मुझे ये जानना था की अरबाज़ के निर्देशन में और भी कुछ ख़ास बात है क्या? इसका जवाब मिला थियेटर के बाहर एक पान की दूकान पर। पान वाले ने बताया कि "भाई अकेला हीरो है जिसके फिलम में, बोले तो टिकिट खिड़की पर आज भी पुलिस लगता है"।

सलमान की फिल्मों में एक्शन टिकिट खिडकी से शुरू होता है और परदे पर ढाई घंटे चलता है। 

निर्देशक निर्माता और पांडे जी तीनो लोग इस बात को समझ चुके हैं कि दूसरा रजनीकांत दक्षिण में नही तो मुंबई में तो बनाया ही जा सकता है। माफ़ कीजिये .. बन चुका है।

ना जाने कब तक हम पांडे जी कि फिल्मों की तारीफ़ में ये कहते रहेंगे कि "फिल्म मनोरंजक है लेकिन दिमाग घर में छोड़कर जाईये"। 

एक आखिरी गुजारिश ... "अब बस भी कीजिये पांडे जी"

Sunday, December 2, 2012

तलाश





आमिर खान का फिल्म में होना जहां फिल्म की सफलता की गारंटी बन चुका है वही आमिर की उपस्थिति से मानदंड इतने ऊंचे हो जाते हैं कि सर्वोत्तम से कम कुछ भी नहीं तलाश के साथ भी यही हुआ

तलाश कहानी है पोलीस इंस्पेक्टर शेखावत (आमिर खान) की जो अपने बेटे की मौत का खुद को जिम्मेदार समझता है और इसी अंतर्द्वंद में वो अपनी पत्नी रोशनी (रानी मुखर्जी) के साथ रह रहा है, लेकिन फिल्म कि मुख्यधारा में जो कहानी चल रही है उसमे एक फिल्मस्टार की रहस्यमय परिस्थितियों में एक कार एक्सीडेंट में मौत हो जाती है जिसकी तहकीकात में पुलिस के सामने कई राज़ खुलते जाते हैं और कहानी में रोज़ी (करीना कपूर), तैमूर (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) के साथ और भी कई पात्र आते हैं फिल्म की रोचकता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि आप को फिल्म के बारे में कम से कम जानकारी हो इसलिए बेहतर है कि फिल्म के कहानी कि इससे ज्यादा बात ना कि जाए

जोया अख्तर और रीमा कागती की लिखी कहानी काफी सधी हुयी है और बराबर आपको कहानी के भीतर ही रखती है रीमा की पिछली फिल्म भी (हनीमून ट्रावेल्स) उनकी कहानी के विशेष अंत के प्रति उनकी पसंद को दर्शाती है फिल्म के संवाद जो फरहान अख्तर और अनुराग कश्यप ने लिखे हैं, एक बड़ी हिंदी फिल्म के बनाए हुए पैमाने पर तो कोई विशेष नहीं है लेकिन फिल्म की मांग भी यही थी की परदे पर आम जिंदगी जीने वाले कलाकार भारी-भरकम संवाद बोलते नज़र नहीं आने चाहिए

हालांकि आमिर के द्वारा अभिनीत फिल्म में निर्देशक की तारीफ़ करते वक्त एक असमंजस बना रहता है लेकिन फिर भी यही कहा जाएगा रीमा की ये फिल्म १९६० के दशक के बाद हिंदी में बनी सस्पेंस फिल्मों में एक बेहतरीन फिल्म है सस्पेंस फिल्मों की खासियत यही होनी चाहिए की ना सिर्फ राज़ खुलने के बाद वो सभी सवालों का जवाब दे बल्कि फिल्म शुरू से ही हमे राज़ को समझने का इशारा भी करे ये दोनों ही बातें तलाश को पिछले कुछ दशको में बनी सस्पेंस और थ्रिलर फिल्मों से अलग करती है निर्देशक ने अपने तीनो ही मुख्य पात्रों को वज़न बढाने की हिदायत दी थी, और उनका ये फैसला भी पात्रों को और आम बनाता है

फिल्म संगीत से ज्यादा बैगराउंड संगीत का महत्व है जिसके लिए रामसंपथ बिलकुल उपयुक्त हैं मुस्काने झूठी हैं गाना फिल्म की शुरुआत में है जो देखने और सुनने दोनों में ही बेहतरीन है फिल्म कि सिनेमेटोग्राफी मोहनन ने कि है जो काफी आला दर्जे की है, पानी के अंदर शूट किया गया सीन (जिसे लन्दन के एक स्टूडियो में शूट किया गया था) काफी अच्छा है

सस्पेंस फिल्मों के राज़ पता चल जाने के बाद उस फिल्म को देखना जैसे बेकार ही होता है लेकिन यहाँ राज़ के अलावा भी एक बड़ी वजह है और वो है अदाकारी अब वो चाहे आमिर के सहयोगी बने राज कुमार यादव ही क्यों ना हो अय्या जैसी फिल्मों में देखने बाद रानी को इस फिल्म में देखना सुखद है रानी ने इस फिल्म के माध्यम से बताया कि एक अच्छे कलाकार को भी खुद कि प्रतिभा दिखाने के लिए एक अच्छी फिल्म या निर्देशक की तलाश होती है करीना कपूर का अभिनय (हाव-भाव) तो ठीक है, लेकिन इस फिल्म में समझ आया की वो जो हर दूसरी फिल्म में करती हैं दरअसल उस अभिनय कि जरूरत यहाँ थी नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने बेहतरीन काम किया है लेकिन इससे कम की उम्मीद उनसे की भी नहीं जा सकती क्युकी ना सिर्फ वो अपने कम्फर्ट ज़ोन में थे बल्कि उनके पात्र और अभिनय ने सलाम बॉम्बे के रघुवीर यादव की भी याद दिला दी  
बात करे आमिर खान की तो सिर्फ यही कहा जाना चाहिए कि आमिर खान ने अभिनय में अपने बनाये मानदंड के अनुरूप ही काम किया है


सिर्फ एक टीस रह जाती है कि आमिर अगर कोई सस्पेंस फिल्म करे (२ साल के बाद), तो क्या इससे भी बेहतर कि उम्मीद करना वही होगा जैसा सचिन से हर मैच में शतक की उम्मीद करना

Monday, September 17, 2012

सुर-क्षेत्र : भारत-पाकिस्तान?


पिछले सात-आठ सालों से भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच अब वो सनसनी नहीं पैदा करता जो कभी किया करता था, अब उस जगह पर आस्ट्रेलिया आ चुका है लेकिन क्या आस्ट्रेलिया ने वो मरने मारने वाली बात पैदा की?... शायद नहीं ये एक अच्छी बात है लेकिन शायद बाजार के लिए ये अच्छी बात ना हो एक दूसरे को हराने की भावना दोनों ही देशों में है लेकिन शायद पाकिस्तान में ज्यादा क्योंकी पाकिस्तान की हर बात भारत केंद्रित ही होती है, वंहा हर अच्छी और बुरी बात के लिए भारत का ही उदाहरण दिया जाता है इसी भावना की वजह से भारत-पाकिस्तान का मैच हर किसी के लिए (खिलाड़ियों के लिए भी) पैसा कमाने की गारंटी था और आज भी है एक दूसरे को हराने की भावना शायद थोड़ा कम हो गयी हो लेकिन इतनी तो हमेशा ही रहेगी, की इसका जम के फायदा उठाया जाए, और अब यही फायदा उठाने की बारी है सुर-क्षेत्र कार्यक्रम की जो कलर्स चैनल की नयी पेशकश है, इसके निर्माता है बोनी कपूर और निर्देशक हैं सारेगामा और अन्ताक्षरी वाले गजेन्द्र सिंह

मज़े की बात ये है की प्रोग्राम अमन की आशा में बनाया गया है लेकिन भुनाया वही जा रहा है जिसकी वजह से अमन नहीं है प्रोग्राम की टीआरपी इसी में है की शो के दरमियान बिलकुल भी अमन ना रहे कहने का मतलब है की दोनों देशों के बीच जो भी थोड़ा बहुत अमन है उसमे ऐसे प्रोग्राम नुकसान ही पहुंचाते हैं
एक और बात की आशा भोंसले को इस पैसा कमाने वाले खेल में अपनी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए, क्योंकी आतिफ असलम से सुरों के लिए बहस करने में उनको बहुत नीचे उतरना होगा

अब सबसे बड़ा सवाल की अपने फायदे और पैसा कमाने के लिए किसी भी कलर्स, बोनी कपूर या गजेन्द्र सिंह को भारत के नाम का दुरूपयोग करने कि इजाज़त किसने दी? हिमेश और आतिफ की टीम का नाम भारत-पकिस्तान कैसे हो सकता है? हमारा प्रतिनिधित्व वो क्यों करे जिसे हमने चुना ही नहीं?

ये इसलिए मुमकिन है क्योंकी लोकतंत्र में रहते हुए भी, हमें आदत है बीसीसीआई की टीम को इंडिया की टीम मानने की, माल्या और अम्बानी के खरीदे हुए लोगो को बंगलौर और मुंबई कहने की, फेमिना की प्रतियोगी को मिस इंडिया कहने की, मिस वर्ल्ड मानने की, इस बात से बेखबर की उनकी जीत किस तरह का और कितना बदलाव समाज और बाज़ार में ला सकता है
हमको चुनने और हटाने का अधिकार है

राम सेठी : अमिताभ के प्यारेलाल



  
सत्तर और अस्सी के दशक में हिंदी फिल्मों के शौक़ीन और खासकर अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों के लिए प्यारेलाल एक जाना पहचाना नाम है ये वो नाम है जो अमिताभ बच्चन की प्रकाश मेहरा के साथ की गयी सभी हिट फिल्मों के साथ जुड़ा हुआ है जी हाँ और वो हैं राम सेठी। जिन्होंने पिछले चालीस सालों में अमिताभ और उस वक्त के तकरीबन सभी बड़े कलाकारों के साथ काम किया वो एक बार फिर चर्चा में आये जब उन्हें पिछले दिनों एक मोटर बाईक के विज्ञापन में देखा गया वैसे 2010 में उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की फिल्म खेलें हम जी जान से में काम किया था लेकिन वो फिल्म बुरी तरह पिटी और राम सेठी के लौटने की चर्चा हुई बाईक के विज्ञापन के साथ

७३ साल कि उम्र में राम सेठी एक बार फिर अपने फ़िल्मी सफर को शुरू करने जा रहे हैं राम सेठी के अनुसार वो १९६२ में दिल्ली से मुम्बई आये और उनके आठ भाई बहन थे उनके पिता ने उन्हें १५० रूपए महीना देने का वादा किया लेकिन सिर्फ ६ महीनो के लिए ना कुछ होना था ना हुआ और वो वापस दिल्ली गए लेकिन १९६४ में फिर आने के लिए, इस बार भी काम तो नहीं मिला लेकिन लेख टंडन (रवीना के पिता) जैसे निर्देशकों से आश्वाशन जरूर मिला १९६८ में एक बार फिर मुंबई का रुख किया और इस बार वापस ना जाने के लिए, और शुरुआत हुई एम.एस. सथ्यु (गरम हवा के निर्देशक) के सहायक के रूप में जो भारत-रूस के सहयोग से बन रही एक फिल्म ब्लैक-माउन्टेन बना रहे थे


१९७१ में राम सेठी की मुलाक़ात प्रकाश मेहरा से हुई जो एक फिल्म बनाने जा रहे थे, राम सेठी ने शुरुआत की क्लैप-बॉय के रूप में और फिल्म के लिए डायलाग भी लिखे।
राम सेठी बताते हैं कि उन दिनों राईटरस को ना सिर्फ लाइन्स को उर्दू में ही लिखना पड़ता था बल्कि उनके सही उच्चारण की जिम्मेदारी भी होती थी।

प्रकाश मेहरा कि फिल्म एक कुंवारी एक कुंवारा में सहायक निर्देशक की भूमिका के साथ अभिनय का भी मौक़ा मिला और यहाँ से राम सेठी के अभिनय का सफर शुरू हुआ। फिर उसके बाद जंजीर आई जिसमे उन्होंने एक पुलिस कान्स्टेबल का रोल अदा किया। 

और फिर आई मुकद्दर का सिकंदर, जिसमे राम सेठी ने अमिताभ बच्चन के साथ काम किया जिसने उन्हें प्यारेलाल के नाम से ही प्रसिद्ध कर दिया। दरअसल प्यारेलाल का रोल असरानी को करना था लेकिन ऐन वक्त पर असरानी किसी दूसरी फिल्म कि शूटिंग में फंस गए और दो दिल इंतज़ार के बाद रोल मिला राम सेठी को।

प्रकाश मेहरा ने राम सेठी को १९८३ में एक फिल्म घुंघरू का निर्देशन भी करने को दिया जिसमे शशि कपूर और स्मिता पाटिल जैसे कलाकार थे। 
प्रकाश मेहरा राम सेठी को नहीं छोड़ना चाहते ना राम सेठी प्रकाश मेहरा को। प्रकाश मेहरा के साथ ने जहा उन्हें काम दिलाया वहीं शायद राम सेठी बाहर मिलने वाले काम को गंवाते भी रहे।

नब्बे के दशक में राम सेठी की माली हालत ने उन्हें एक बार फिर करीब करीब फुटपाथ पर लाकर खड़ा कर दिया, यहाँ एक बार फिर प्रकाश मेहरा ने उन्हें आर्थिक मदद की। करीब चार साल तक टीवी में काम करने के बाद राम सेठी एक बार फिर अपने पुराने काम में मशगूल होते दिख रहे है। प्यारेलाल का स्वागत है।

राम सेठी कि अगली फिल्म है राजकुमार हिरानी और आमिर खान की पीके

Saturday, September 15, 2012

KBC : बनता बिगड़ता स्वरुप




सन 2000 से शुरू होकर के.बी.सी. ने हर बार टीआरपी के अपने ही रेकोर्डस तोड़े हैं दूसरे देशो में इस शो को मिली सफलता से मैं उतना अवगत नहीं हूँ फिर भी ये अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में इस शो को मिली सफलता अभूतपूर्व है जिसकी सबसे बड़ी वजह अमिताभ बच्चन ही हैं और शायद ही किसी भी देश में इसको होस्ट करने वाला शख्स अमिताभ बच्चन की ऊंचाईयों का रहा हो
अमिताभ बच्चन का केबीसी को करना एक संयोग ही था, क्यूँकी उस वक्त फ़िल्मी सितारों के लिए टीवी में काम करना उनको फिल्मों में काम ना मिलने का संकेत होता था लेकिन अमिताभ की मजबूरी और हमेशा नए प्रयोग करने कि उनकी सोच ने भारतीय दर्शकों को एक गजब का शो दे दिया
अमिताभ बच्चन कि भाषा शैली और उनका व्यक्तित्व पूरी तरह से इस शो की आत्मा के साथ है और फिर खुद ... अमिताभ बच्चन हालांकि शाहरुख ने भी शो को होस्ट किया लेकिन वो बात नहीं आ पायी क्योंकी अमिताभ पहले ही इस शो मापदंड तय कर चुके था हालाँकि शाहरुख ने भी शो में कुछ नया जोड़ने की कोशिश जरूर की, लेकिन शायद वो इस शो के लिए बेहतर पसंद थे ही नहीं, ठीक वैसे ही जैसे अमिताभ बिग-बॉस के लिए नहीं थे


पिछले दो सीजन में केबीसी की टीआरपी जरूर बढ़ी है लेकिन शायद शो को सर्वाधिक पसंद करने वालों के वर्ग में बदलाव जरूर आया है जो लोग सिर्फ सवाल जवाब मे रूचि रखते हैं उनके लिए शो का नया फार्मेट थोड़ा खिजाने वाला है आप जो देखना चाहते हैं उसके लिए आपको नाहक ही इन्तज़ार करना पड़ता है, अमिताभ को पूछे जाने वाले सवाल अमिताभ को कम कुछ दर्शकों को ज्यादा परेशान करते हैं शो का ड्रामा मानो बालाजी टेलीफिल्म्स ने ही निर्देशित किया हो और ये सब हो रहा है उस दर्शक वर्ग को लुभाने के लिए जो केबीसी से ज्यादा आनंदी के भविष्य के लिए परेशान हो तो शायद अब घरों में चैनल बदलने की लड़ाई ना हो अब अपनी अपनी नापसंद के द्रश्यों के वक्त किसी को फोन किया जा सकता है या रसोई में जा कर गैस धीमे की जा सकती है


एक और बात जो आप को शो में हिस्सा लेने के लिए फोन करने से रोकती है वो ये की अगर बुलावा आ गया तो एक दुःख-भरी कहानी भी होना चाहिए मैंने लाख ड्रामा जोड़ने की कोशिश की अपनी जिंदगी में लेकिन ऐसा दुःख नहीं था जो केबीसी में जा के सुनाया जा सके सो फोन करना बंद

अब अस्सी प्रतिशत प्रतियोगियों का ठीक ठाक रकम जीतना भी शो कि सच्चाई को शक के दायरे में खड़ा करता है वही ऑडिइंस पोल जैसी लाइफ लाइन अब खुल के सामने आ चुकी हैं

तो ये शो स्क्रिप्टेड है इसमे कोई शक नहीं लेकिन इसमे अच्छी बात ये है कि ये गरीब और जरूरतमंदों के हित में है आप किसी का भला करके पैसे कमाए इसमे किसी को कोई आपत्ती नहीं होनी चाहिए हाँ ये जरूर है की जिन लोगो में शो के प्रति रूचि उसकी मूल-भावना को लेके थी, उनको निराशा ही होगी

BARFI!





3.5 (Three & Half Star)
***

कहते हैं कि प्रयास अच्छा हो तो भगवान भी साथ देते है और हुआ भी वही की एक खूबसूरत फिल्म की शुरुआत में आपको तलाश का ट्रेलर देखने को मिलेगा तो जैसा की राज खुल चुका है जी हाँ बर्फी एक देखने योग्य फिल्म है

बर्फी (रनबीर कपूर) जो बोल और सुन नहीं सकता और जिसे देख कर चार्ली चैप्लिन और राजकपूर की याद आती है, दार्जिलिंग में अपने पिता के साथ रहता है कलकत्ता से आयी हुए एक लड़की श्रुति (इलीना डीक्रूज) जिसको देखते ही बर्फी उससे अपने प्यार का इज़हार करता है, थोड़ा इनकार के बाद (शायद इसलिए क्युकी श्रुती की सगाई हो चुकी है और जल्दी ही शादी होने वाली है) श्रुती भी बर्फी से प्यार करने लगती है लेकिन श्रुति अपनी माँ के समझाने और हिम्मत ना होने कि वजह से बर्फी का साथ छोड़ शादी कर लेती है इधर बर्फी को अपना प्यार उसके बचपन कि दोस्त झिलमिल (प्रियंका चोपड़ा) में मिलता है जो ऑटिस्टिक है फिल्म बर्फी और झिलमिल के स्वार्थहीन प्यार कि कहानी है, जहां भावनाएं ही महत्वपूर्ण हैं इस कहानी के पीछे एक और कहानी भी है, जहां झिलमिल का किडनैप हो गया है

जहां तक फिल्म की स्क्रिप्ट का सवाल है फिल्म आप को बाँध के रखती है फिल्म का नायक जो बोल नहीं सकता वो कही भी अपनी बात को कह नहीं पाया ऐसा नहीं लगता, कही कही तो ऐसा लगता है कि ना बोल पाना ही शायद अपनी बात को पूरी संवेदना के साथ बता पाने कि क्षमता देता है फिल्म शुरू से ही नायक के माध्यम से आप को हँसाना और गुदगुदाना शुरू कर देती है, बर्फी आप का अपना है वो ऐसा है जिसकी गलतियां बार बार माफ की जा सकती हों फिल्म के दो मुख्य पात्र असामान्य रूप से किसी बीमारी या लाचारी से ग्रस्त हैं फिर भी फिल्म में रिश्ते और संवेदनाए ही मुख्य है और बीमारी कही भी आगे नही आती फिल्म की रफ़्तार जैसे ही थोड़ा धीमी पड़ती है सही समय पर मध्यांतर आ जाता है फिल्म में कई सारे बेहतरीन सीन है चाहे वो घडी पीछे करना हो, प्रियंका-रणबीर या रनबीर-इलीना के सीन हो या आखिरी सीन हो
फिल्म का लुक बेहद खूबसूरत है, लोकेशन बहुत अच्छे हैं
वही कुछ बाते ऐसी है जैसे बर्फी की मदद के लिए श्रुति का घर छोड़ देना, झिलमिल से बर्फी के इतने लगाव की वजह साफ़ ना होना, (और श्रुति से भी) या श्रुती से शुरू में इतना लगाव होने पर भी बाद में उसके लिए कोई भावना ना होना, ये सवाल पैदा करती हैं
प्रियंका चोपडा का रोल शायद उनके प्रियंका चोपडा होने कि वजह से थोड़ा खींचा गया लगता और इसी वजह से ना सिर्फ फिल्म धीमी होती है, और कही पर थोड़ा उबाऊ भी होती है और इलीना का कैरेक्टर जिसे थोड़ा और स्थापित किये जाने कि जरूरत थी वो हो नहीं पाया

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बेहतरीन है और रवि वर्मन ने हर एक फ्रेम को खूबसूरत बनाया है फिल्म का लुक सत्तर के दशक का ही लगता है प्रीतम का संगीत फिल्म को और बेहतर बनाता है

निर्देशक अनुराग बासु मानवीय संवेदनाओं को उभारने में हमेशा से माहिर रहे हैं और इस फिल्म में उन्होंने ऊंचाईयों को छुआ है उन्होंने फिल्म के हर पहलू को संभाला है
प्रतिकूल परिस्थितियों में प्यार को बढते दिखाना अनुराग कि खासियत रही है
मेरे मुताबिक़ ये फिल्म संजय लीला भंसाली को जरूर देखना चाहिए

रनबीर कपूर फिल्म दर फिल्म खुद को स्थापित करते जा रहे हैं जहां उनके पात्र में चैप्लिन और राजकपूर कि झलक दिखती है वही रनबीर ने खुद को इनकी नक़ल करे जाने के इलज़ाम से कोसो दूर रखा है, यहाँ तक कि उन्होंने निश्चित तौर से अपने अभिनय में खुद के ही रंग डाले हैं
प्रियंका चोपड़ा के अभिनय कि तारीफ़ करनी होगी, ज्यादा इसलिए कि उन्होंने कुछ ज्यादा करने कि कोशिश नहीं की अलबत्ता वो कहीं कहीं हाँथ से बाहर जाती दिख रही थी, लेकिन यही निर्देशक का कमाल है कि उन्होंने प्रियंका को सीमा में ही रखा
इलीना कि ये पहली हिंदी फिल्म है लेकिन वो दक्षिण भारत की स्थापित अभिनेत्री है और इस फिल्म कि सूत्रधार भी उनमे एक ताजगी नज़र आई और उनका रोल उनके अच्छे लगने कि सीमा के अंदर ही है
सौरभ शुक्ला ने नियाहत ही उम्दा काम किया है वो नायक के खिलाफ हैं लेकिन सहानुभूती उनके चेहरे पर है

कुल मिलाकर बर्फी एक ना छोड़े जाने वाली फिल्म है और इसे देखने की कई वजहे हैं
बर्फी आप को, आप सब को मुस्कान के साथ ही घर भेजेगा

3.5 (Three & Half Star)
***
 एक नज़र इस पे भी... 

Monday, September 10, 2012

RAAZ : अर्नब के राज़ में - Arnab's Journalism





पाकिस्तान के हवाले से मीडिया का एक सच सामने आया जिस पर सियासी महकमों और मीडिया पर भरपूर बात और जम के छीछालेदर की गयी बात कोर्ट तक भी गयी और जज ने प्रोग्राम के फुटेज भी मंगा के देखे हुआ कुछ यूँ की पाकिस्तान के एक टीवी चैनल में प्रतिष्ठित पत्रकार मेहर बुखारी और मुबाशिर लुकमान एक सियासी पार्टी के नुमाईंदे मालिक रियाज़ को इंटरव्यू कर रहे थे और प्रोग्राम में लिए जाने वाले ब्रेक के दौरान होस्ट और गेस्ट के बीच होने वाली बातों का फुटेज लीक हो गया इस फुटेज में काबिल-ए-गौर बात ये है कि नेता किस तरह मीडिया का जम के दुरपयोग कर रहे हैं और टीआरपी की दौड में बने रहने के लिए कुछ चैनल किस तरह अपना दुरपयोग करा रहे हैं





पिछले दिनों अर्नब गोस्वामी ने राज ठाकरे का इंटरव्यू लिया जो इस मायने में काफी महत्व रखता है कि राज ने अपनी पार्टी बनाने के बाद पहली बार कोई इंटरव्यू हिंदी में दिया राज ठाकरे हिंदी न्यूज़ चैनल्स का अपने खिलाफ चलाये जा रहे दुष्प्रचार के खिलाफ बोलना चाहते थे, जो एक हद तक सही भी है राज ठाकरे, जैसा कि उन्होंने दावा किया, महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति नहीं करना चाहते तो फिर ये सफायी आखिरकार थी किस जनता के लिए? 
राज को अपने चाचा से विरासत में ना सिर्फ सोचने का तरीका मिला है बल्कि बोलने का भी दूसरी तरफ अर्नब गोस्वामी की बात की जाए तो राज के इंटरव्यू से पहले उन्हें देखने पर यही लगता था की उन्हें दूसरों का बोलना पसंद नहीं इसीलिए वो अपने चैनल में आये मेहमानों के स्वागत में उन्हें सिर्फ सवाल सुनने की ही जहमत उठाने देते थे.. जवाब वो खुद ही देते हैं लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ अर्नब कि, जवाब तो दूर आप सवाल भी नहीं पूछ पाए?

जनता कि तरफ से सवाल पूछने का बीड़ा उठाने वाले अर्नब गोस्वामी ने तर्क वितर्क का अभिनय तो ठीक किया लेकिन संविधान और क़ानून व्यवस्था के पक्ष में बोलने के लिए भी उनके के पास तर्क नहीं थे? लेकिन अर्नब के सवाल जवाब के इतिहास को देखा जाए तो शायद ही कोई अर्नब के सामने बैठ कर २० सेकंड से ज्यादा एक बार में बोल पाया हो फिर अचानक ये ब्लडप्रेशर डाउन क्यों? (राज के सामने अर्नब काफी थके नज़र आ रहे थे)

तो क्यों ना माना जाए की ये वही तिकडम थी जो हमने पाकिस्तानी चैनल में होती देखी क्युकी ये पहला मौक़ा नहीं जब टीआरपी के लिए अर्नब ने ऐसी चाल चली हो.. यही खूबसूरत अभिनय वो नरेन्द्र मोदी के साथ भी कर चुके हैं मज़े की बात है कि अर्नब सफल हुए और राज के इंटरव्यू को काफी टीआरपी मिली
अर्नब की सफलता ने एक पीड़ित व्यक्ति को ये बताया कि उस पर हो रहा अत्याचार क्यों सही है

Sunday, September 2, 2012

JOKER (जोकर)



2 Star (**)
आज कल जिस तरह की फ़िल्में सफल हो रही हैं और बेहिसाब पैसा कमा रही है, ऐसे दौर में भी अगर कोई फिल्म बड़े बज़ट और सितारों के होते हुए भी पसंद ना की जाए तो लानत है

जोकर कहानी है अगस्त्या (अक्षय कुमार) की जो अमेरिका में एक वैज्ञानिक है और एक ऐसे मशीन के निर्माण में व्यस्त है जो एलियंस से संपर्क कर सके इस बात के लिए अगस्त्या पर पैसा लगाने वाली कंपनी का दबाव है और अब उसके पास एक महीने की मोहलत है इस प्रयोग को पूरा करने के लिए अगस्त्या को भारत में उसके गाँव पगलापुर से सन्देश आता है कि उसके पिता की तबियत ठीक नहीं है अगस्त्या अपने साथ रहने वाली दोस्त दीवा (सोनाक्षी सिन्हा) के साथ पगलापुर आता है, यहाँ गाँव की हालत काफी खराब है और अगस्त्या इन बिगड़े हालात को सुधारने के प्रयास में एक तरकीब का सहारा लेता है जिसके तहत वो दुनिया को ये संदेश पहुंचाता है की पगलापुर में एलियंस ने क्रॉप सर्किल बनाया है अब पगलापुर के ६०० पागल निवासी और देश भर का मीडिया एलियन एलियन खेल रहे हैं

 

फिल्म के निर्माता, निर्देशक, लेखक, एडिटर, संगीत निर्देशक, बैगराउंड संगीतकार, गीतकार, डी. आई. इंचार्ज शिरीष कुंदर ही हैं वे जो जो -कर सकते थे उन्होंने सब किया, पता नहीं वो अभिनय क्यों नहीं करना चाहते कहना होगा कि कुंदर ने कहानी तो ऐसी सोची जो मनोरंजक हो सकती थी, लेकिन ना जाने क्यों वे इतनी जल्दी में थे की (काम का बोझ शायद) कहानी में वो किसी भी बात को समय नहीं दे पा रहे थे सब कुछ चुटकी बजाते हो रहा था शिरीष एक बेहतरीन एडिटर हैं और अपनी पिछली निर्देशित फिल्म की तरह इस बार भी एडिटिंग काफी अच्छी थी फिल्म का लुक आकर्षक है लेकिन स्पेशल इफेक्ट्स बहुत ही साधारण है, बल्कि हास्यास्पद हैं सिनेमेटोग्राफी अच्छी है फिल्म के संवाद औसत दर्जे के हैं और कई जगह आप को हंसा सकते हैं लेकिन अफ़सोस वो कई जगह बहुत कम है

 

फिल्म के शुरुआत में ही चित्रांगदा सिंह पर फिल्माया गया एक आइटम नंबर है आइटम नंबर और चित्रांगदा दोनों ही एक दूसरे के लिए नए हैं इस लिहाज़ से गाने में एक ताज़गी है बाकी गानों के लिए इस लिए कुछ नहीं कहा जा सकता क्युकी टिप्पणी के लिए गानों का याद रह जाना भी जरूरी है


अभिनय कि द्रष्टि से अक्षय कुमार के पास कुछ भी ऐसा नहीं है जो उन्होंने पहले ना किया हो लेकिन फिर भी अक्षय सफल हैं सोनाक्षी की ये सबसे महत्वपूर्ण फिल्म है लेकिन इसलिए नहीं कि इस बार उन्हें कुछ करने को मिल गया है बल्कि इसलिए कि वे इस बार पूरी फिल्म में हैं और बार बार दिखती हैं काला गूश गुट गुट ये वो शब्द हैं जिसके साथ श्रेयश तलपड़े अपनी पूरी क्षमता के साथ आप को चिढ़ाते हैं विंदू दारा सिंह, असरानी, अवतार गिल, अंजन श्रीवास्तव, संजय मिश्रा और दर्शन ज़रीवाला के बीच आप को मिनीषा लाम्बा पर नज़र रखनी होगी



अक्षय कुमार और शिरीष दोनों को ही जोकर के हश्र से सबक लेने की जरूरत है