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Monday, June 25, 2012

GANGS OF WASSEYPUR



 GANGS OF WASSEYPUR (2.5 Star)



आईये तीन घंटा के लिए वासेपुर चले अरे भैया सनीमा देखे, गैंग्स आफ वासेपुर

गैंग्स आफ वासेपुर साढ़े पांच घंटे की फिल्म है जिसे 2 भागो में प्रदर्शित किया जाएगाफिल्म आधारित है बिहार में असमाजिक तत्वों का लाठी (आधुनिक हथियार पढ़े) के जोर पर अपनी सत्ता कायम करने पर सरदार खान (मनोज बाजपेयी) ऐसा ही एक गुंडा है जो वहाँ के स्थानीय नेता रामधारी सिंह (तिग्मांशु धुलिया) का दुश्मन है, जिसने सरदार खान के पिता शाहीद खान कि हत्या की थी अब एक तीसरा ग्रुप भी है कुरैशियों का जिसका इस्तेमाल रामधारी सिंह करता है सरदार खान के खिलाफ और इसके बाद है खून खराबा, गाली गलौच और वर्चस्व की लड़ाई

कहानी जित्ता बुचंटी सा लग रहा है ना, सनीमा उत्ते लंबा है एक बार सुरु होता है तो खतम होने का नामे नहीं लेता

जी हाँ फिल्म कि शुरुआत एक प्रभावशाली सीन से होती है उसके बाद फिल्म 1940 से  2005 तक का सफर तय करती है कोयला माफिया से शुरू हुई फिल्म आपके दिमाग और पठकथा पर ऐसी कालिख मलती है कि बहुत कुछ समझ के परे हो जाता है यहाँ तक कि पीछे से बराबर बोल रहे सूत्रधार की समझाईश भी कम पड़ जाती है लेकिन इस कन्फ्युसन के बीच फिल्म के ट्रीटमेंट का पूरा मज़ा लिया जा सकता है अलबत्ता ये जरूर है कि आप को भाषा पर थोड़ा ज्यादा ध्यान रखना होगा और शायद इसीलिए फिल्म के उत्तर भारत में ज्यादा पसंद किये जाने की संभावना है गालियों का जम कर इस्तेमाल किया गया है लेकिन ज्यादातर ये गालियाँ ठूंसी गयी नहीं लगती है, जैसा कि आमतौर पर फिल्मों में होता है फिल्म में कई सीन ऐसे हैं जो अच्छे से फिल्माए और लिखे गए हैं फिल्म में बहुत सारे किरदार हैं जिनको वैसे भी याद रखना मुश्किल होता है ऊपर से ज्यादातर चेहरे भी नए है तीसरे करेला वो भी नीम चढ़ा ये कि कुछ किरदारो को १ से ज्यादा लोग अभिनीत कर रहे हैं इसलिए कौन कब बदल जाता है पता ही नहीं चलता

वैसे तो ये अनुराग कश्यप का पसंदीदा विषय है और उन्होंने एक निर्देशक के बतौर अच्छा काम किया है, अनुराग कश्यप कि खासियत है की वो फिल्मों में छोटी छोटी बातों का काफी ख्याल रखते हैं, लेकिन शायद वो अपने  दिल के करीब के विषय से कुछ भी निकालना नहीं चाहते थे इसलिए फिल्म अंतहीन से लगने लगती है

फिल्म का संगीत आप का ध्यान अपनी ओर जरूर खींचेंगा, चाहे आप गीत के बोल ना भी समझे सिनेमेटोग्राफी काफी अच्छी है फिल्म को अलाहाबाद, वाराणसी, पटना के साथ साथ और भी कई जगहों पर फिल्माया गया है और बिहार को काफी सच्चाई से परदे पर उतारा गया है फिल्म के संवाद को आम जिंदगी से ही उठाया गया है जो फिल्म को और सच्चाई के पास ले जाते हैं

फिल्म में ज्यादातर एक्टर जैसे मनोज वाजपेयी, पियूष मिश्रा, जयदीप अहलावत, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ये वो है जो पहले ही अपना लोहा मनवा चुके हैं वही रीमा सेन और तिग्मांशु धुलिया ने भी अपने पात्रो को खूब जिया है.. रिचा चड्ढा इस फिल्म कि खोज कही जा सकती है लेकिन अभी उन्हें अच्छी अभिनेत्री कहने से पहले कुछ और इंतज़ार करना होगा

जिस तरह से ये फिल्म अपनी कहानी कहते कहते दर्शकों के धैर्य का इम्तिहान लेने लगती है उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि ... डाइरेक्टर साब ठीके कहे थे .... कह के लूँगा






Sunday, June 17, 2012

फेरारी की सवारी


Ferrari Ki Sawaari Review

फेरारी की सवारी 
3 Star (***)


जहा एक ओर राऊडी राठोर जैसी फिल्मे सफलता कि गारंटी बनती जा रही हैं वही ये देखना काफी सुखद है कि इस गारंटी वाले फार्मूले के बाहर भी कुछ लोग प्रयास कर रहे हैं फेरारी कि सवारी ऐसा ही एक प्रयास है

ये दो पिता, दो बेटों और एक दादा-पोते कि कहानी है रूसी (शर्मन जोशी) जो एक सरकारी दफ्तर में हेड क्लर्क है वो अपने पिता देबू (बमन इरानी) और बेटे कायो (रित्विक सहोरे) के साथ रहता है और अपने बेटे को इंडिया के क्रिकेट टीम में खेलते देखना चाहता है और इसके लिए कोई भी क़ुरबानी देने को तैयार है वही रुसी का पिता देबू अपने पोते को एक क्रिकेटर बनाने के पक्ष में नहीं है और इस विरोध का उसके पास अपने कारण है ना चाहते हुए भी हो गयी एक घटना के फलस्वरूप रुसी के पास सचिन तेंदुलकर कि फेरारी आ गयी है, जो उसने चोरी कि है अब एक ओर जहाँ इस फेरारी कि खोज चल रही है वही रुसी इस कार से किसी तरह अपना पीछा छुडाना चाहता है अब फिल्म में ये देखना है कि किस किस ने कब कब फेरारी कि सवारी की? और ये वापस सचिन के पास पहुंची या नहीं?

राजू हिरानी ने इस फिल्म कि कहानी लिखी है और इसका स्क्रीनप्ले लिखा है विनोद चोपरा और फिल्म के निर्देशक राजेश मपुस्कर ने कहानी में एक नयापन तो है लेकिन फिल्म कही न कही 1948 में प्रदर्शित इटालियन फिल्म बाइसिकल थीफ्स से प्रभावित है हालाँकि राजू हिरानी ने कहानी को पूरी तरह खुद में ढाल लिया है उनके लिखे संवाद फिल्म कि जान हैं और आपको हसाने में पूरी तरह सक्षम हैं फिल्म का कमज़ोर पक्ष ये है कि फिल्म जिन आदर्शो और मूल्यों के लिए ये आगे बढती है निर्देशक वो स्थापित करने में असफल रहे हैं फिल्म कि लम्बाई भी थोड़ा कम कि जा सकती थी वही ये भी कहना होगा कि रूसी जैसे ईमानदार व्यक्ति को ऐसी किसी गलती को करने के लिए थोडी बड़ी वजह चाहिए

निर्देशक राजेश मापुस्कर ने इस फिल्म से पहले लगे रहो मुन्ना भाई और 3 इडियट्स में एसोसिएट डिरेक्टर के रूप में काम किया है और इस फिल्म में भी उन्होंने अपना काम अच्छे से किया है हाँ जैसा मैंने पहले कहा फिल्म थोड़ा लंबी है और इंटरवल के बाद काफी धीमे भी हो जाती है सचिन का फिल्म में होना ना होना जितना फिल्म के रिलीज़ के पहले रहस्य था उतना ही रहस्य निर्देशक फिल्म में भी बनाए रखने में सफल रहे हैं
अभिनय कि द्रष्टि से रित्विक सहोरे ने अपना काम ठीक किया है बमन इरानी से ऐसे ही अभिनय कि उम्मीद थी शर्मन जोशी एकदम रुसी ही लगते हैं लेकिन कुछ समय के बाद उनका जरूरत से ज्यादा और बेवजह भोला बनना और दिखने का प्रयास करना उतना अच्छा नहीं लगता जितना शुरू में लगा परेश रावल एक छोटे से रोल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं दीपक शिर्के, सत्यदीप मिश्रा, आकाश दाभाडे और नीलेश दिवेकर सब ने अपने काम को अच्छे से किया है
बतौर आईटम गर्ल एक गाने में लावनी करते हुई विद्या बालन पूरे कपड़े पहनी हुई सिल्क स्मिता ही लगती हैं
फिल्म का संगीत बस ठीक ठाक ही है
अंत में बस इतना ही कि फादर्स डे के मौके पर रिलीज़ हुई इस फिल्म से ना सिर्फ माता-पिता बल्कि फिल्म निर्माताओं को भी ये समझना होगा कि बच्चो को प्यार से पालना और सही तरीके से पालना दो अलग बातें हैं

Monday, June 11, 2012

आईफा के जलवे : सिंगापोर 2012




आईफा के जलवे : सिंगापोर २०१२




समीरा रेड्डी
 नेहा धूपिया



 ऋषि और रनबीर कपूर


परिणिति चोपरा और नेहा धूपिया 


 परिणिति चोपड़ा


शाह्जानपद्मसी 




 सोनाक्षी सिन्हा



श्रीया शरन 


नरगिस फाकरी



हैज़ल कीच




चित्रांगदा



आरती छाबरिया 



बिपाशा बासु 



हैज़ल कीच 



बिपाशा बासु 




कलकी कोएचल्लीन 




कलकी कोएचल्लीन 



अदिति राव हैदरी 




चित्रांगदा




कमल हासन



श्रीय सरन



अभय देओल



ज़ोया अख्तर


समीरा रेड्डी




हैज़ल कीच



दिया मिर्ज़ा

Sunday, June 10, 2012

शंघाई


शंघाई


4 Star 
भारत में विकास और उन्नति के नाम पर गरीबों को उजाड कर, उनकी जमीनों पर कब्ज़ा करके जो इंडस्ट्री, शापिंग माल या बिल्डिंग बनाने कि नीति चल रही है उस नीति को हम शंघाई कह सकते हैं और हाँ अगर आप के अंदर गुंडों को रिश्ते में हम तुम्हारे बाप लगते हैं जैसा कुछ बोलने कि ताकत ना हो लेकिन आप डरते हुए भी अपनी ताकत का समझदारी और चतुराई से सदुपयोग कर सकते हैं तो भी आप नायक है आप हीरो हैं

शंघाई वेसेलिस वेसिलिकोस द्वारा लिखी नोवेल ‘ Z’ पर आधारित है . जिस पर ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित एक फ्रेंच फिल्म १९६९ में बन चुकी है
तो कहानी यूँ है की भारत नगर बस्ती को उजाड कर जो प्रोजेक्ट (IBP) लाया जा रहा है उसका विरोध करने के लिया डाक्टर अहमदी (प्रसन्नजीत) अमेरिका से आये हुए हैं, जिनको उनके समर्थकों के सामने ही एक ट्रक टक्कर मार कर चला जाता है डाक्टर कि समर्थक शालिनी (कलकी कोएच्चलीन) अन्य समर्थकों के साथ इस दुर्घटना को ह्त्या बताकर जांच कि मांग करती है, जिसके लिए मुख्यमन्त्री द्वारा एक जांच आयोग बिठाया जाता है जिसके अध्यक्ष टी ए कृष्णन (अभय देओल) हैं
सरकार कि अपेक्षा है कि कृष्णन इसे एक एक्सीडेंट बताकर रफा दफा करे, जबकि कृष्णन को जांच में कुछ और ही सच्चाई नज़र आती है जोगी परमार (इमरान हाशमी) जो एक पोर्नोग्राफर (खुद को लोकल मीडिया बोलने वाला) है उसके द्वारा दिए गए सबूत कृष्णन को घटना के तह तक पहुंचा देते हैं और अब आप को ना सिर्फ ये पता चलेगा कि घटना के पीछे कौन कौन है बल्कि ये भी कि परिस्थिति और सिस्टम में बंधे होने के बावजूद समझदारी से रास्ता निकला जा सकता है, होनी चाहिए तो बस इसे करने कि चाह

फिल्म कि पठकथा लिखी है दिबाकर बनर्जी और उर्मी जुवेकर ने फिल्म का ट्रीटमेंट ही वो एक पहलू है जो आपको पूरी तरह फिल्म में बांधे रखता है फिल्म कि शुरुआत में आपको घबराहट हो सकती है कि फिल्म आपको समझ में आने वाली है भी कि नहीं, लेकिन थोड़ी ही देर में सब कुछ साफ़ हो जाएगा निर्देशक दिबाकर बनर्जी ने छोटी छोटी बातों का बहुत ध्यान रखा है, मसलन जहाँ एक ओर जोगिन्दर का फोन पर शालिनी का नाम ड्रीमगर्ल लिखना और उसकी स्पेलिंग 'dreemgirl' होना, भीड़ में फोन पर बात करते आते जाते लोग, एक सरकारी ऑफिस, हार्ड डिस्क को हार्ड डिक्स बोलना और ऐसी बहुत सी बातें, वही दूसरी ओर पुलिस और प्रशाशनिक अधिकारियों के बीच कि टशन
कहना होगा कि दिबाकर ने एक साधारण सी कहानी को अपने निर्देशन से बेहतरीन बना दिया

विशाल शेखर का संगीत अच्छा है  गानों के बोल फिल्म कि कहानी के ही हिस्से हैं यहाँ तक कि आईटम सांग भी इम्पोर्टेड कमरिया गाना जहां विदेशी सामान के प्रति हमारी सनक को दिखाता है वही भारत माता कि जय गाना अन्याय का जश्न मनाने का गाना है ज्यादातर हिस्सों में कोई भी बैगराऊन्ड म्युजिक नहीं है, यहाँ तक कि एक दो सीन को छोड़ दिया जाए तो किसी ने ऊंची आवाज़ में बात भी नहीं कि है

इमरान हाशमी ने इस फिल्म में वो करने कि हिम्मत कि है जो भट्ट कैम्प में वो शायद बीस लगातार हिट फिल्म देने के बाद भी ना कर पाते एक पोर्नोग्राफर जिसके दांत आगे से काले हैं, वो पूरी फिल्म में ना सिर्फ एक ही कपड़ा पहनता है बल्कि उसका पेट भी निकला हुआ है अपनी ये दशा बनाने के बाद इमरान को जो मिला वो है एक अच्छा रोल जिसे उन्होंने बखूबी निभाया जिसके लिए उनकी भरपूर प्रसंशा की जानी चाहिए अभय देओल एक दक्षिण भारतीय आई ए एस अधिकारी कि भूमिका में हैं अब मज़े कि बात ये है कि अभय देओल हर सेकण्ड पूरी फिल्म में सिर्फ दक्षिण भारतीय ही लगते है वो भी बिना अइय्यो, रामा और तुम क्या करता जी बोले बिना है ना कमाल कि बात???  और सिर्फ इतना ही नहीं उन्हें एक ऐसे डरने वाले व्यक्ति का रोल अदा करना है जिसे काम बहादुरी वाले ही करने है
शाबाश अभय
कलकी ने अपना काम अच्छे से किया है फिर भी यही दुआ की जानी चाहिए कि उनको कभी तो कुछ अलग करने का मौक़ा मिले
प्रशंनजीत, सुप्रिया पाठक, पितोबश त्रिपाठी, अनंत जोग सभी ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है

आपने वो शंघाई चाहे ना देखा हो पर ये शंघाई आप जरूर देखे और अगर आप ये फिल्म किसी माल या मल्टीप्लेक्स में देखते है तो ये भी जरूर सोचियेगा कही ये मल्टीप्लेक्स भी तो शंघाई का हिस्सा नहीं है???
****/5

Thursday, June 7, 2012

BOL BACHCHAN


on the set of BOL BACHCHAN
Starring : Ajay Devgn, Abhishek Bachchan, Prachi Desai
Director : Rohit Shetty





















"Gangs of Wasseypur"

Directed and produced by Anurag Kashyap, the film stars Manoj Bajpai, Nawazuddin Siddiqui, Richa Chadda and Huma Qureshi in pivotal roles. The movie was recently screened at the Cannes International Film Festival.
Pictures from Cannes and Music launch in Mumbai.