Pages

Saturday, May 12, 2012

ISHAQZAADE

इशकजादे





भारत में एक महिला को खुद को बेहतर साबित करने का सिर्फ एक ही मापदंड होता है कि वो पुरुष के बनाए रास्तो पर कितना और कैसे चलती है, यही समाज में हो रहा है और यही हमारी फ़िल्मी अभिनेत्रियों के साथ भी।
यशराज फिल्म्स कि इशकजादे दो प्रेमीयुगल ज़ोया (परिणिति चोपरा) और परमा (अर्जुन कपूर) कि कहानी है जो ना सिर्फ अलग अलग धर्मों से हैं बल्कि दो पुश्तैनी दुश्मनी रखने वाले अलग अलग राजनैतिक खानदानों से भी हैं। अपने-अपने घर के उम्मीदवारों को जिताने के प्रयासों के बीच ज़ोया और परमा को प्यार हो जाता है। यहाँ कहानी में एक रोचक मोड है जिसके बाद दोनों ही परिवार ज़ोया और परमा के जान के दुश्मन हैं।


भारतीय सिनेमा अपने 100वें साल में कदम रख चुका है और फिल्म कि कहानी भी कुछ इतनी ही पुरानी है। लेकिन हबीब फैसल ने, जो इस फिल्म के निर्देशक भी है, स्क्रीनप्ले कुछ इस अंदाज़ में लिखा है कि इसमे एक नयापन भी है। फिल्म का मध्यांतर काफी रोचक मोड पर है लेकिन सारी रोचकता मोड पर ही, उसके बाद फिल्म उबाऊ हो जाती है और कुछ देर बाद तो फिल्म का हर सीन आखिरी होने कि उम्मीद के साथ आता है। एक संवेदनशील (हिंदू-मुस्लिम) विषय को और अच्छे से उपयोग किया जा सकता था लेकिन कहना होगा कि लेखक ने इसी बात में समझदारी समझी कि इसको दूर से ही संचालित किया जाए । हबीब फैसल के लिखे संवाद साधाहरण हैं।






हबीब फैसल ने इसके पहले दो दूनी चार निर्देशित कि थी और बैंड बाजा बरात जैसी फिल्मों कि पठकथा भी लिखी है। लेकिन इस फिल्म कि तारीफ़ में जो बात कही जा सकती है वो सिर्फ ये है कि फिल्म का पहला भाग दूसरे से अच्छा है। ना तो फिल्म में राजनैतिंक दांव-पेंच ही दिखते हैं, ना दो धर्मों के बीच कि तकरार, और तो और नायक भी नायिका से प्यार अपने माँ के वचन कि वजह से कर रहा है। हबीब से इस बात का भी जवाब लिया जाना चाहिए कि “माफ़ी दे, माफ़ी दे” बार बार बुलवाकर नायिका से किस किस बात कि माफ़ी दिलवा सकते हैं। खासकर तब जब उन्होंने नायिका को ऐसा चुना जो पुरुष से कंधा मिलकर नहीं बल्कि पुरुष से कंधा ऊंचा करके चलना चाहती है।


सिनेमेटोग्राफर हेमंत चतुर्वेदी ने अच्छा काम किया है, लखनऊ ( फिल्म में अल्मोर) के द्रश्यों को उन्होंने अच्छे फिल्माया है, आरती बजाज ने फिल्म को एडिट करके हमेशा कि तरह इसमे कुछ जोड़ा ही है। अमित त्रिवेदी का संगीत एक गाने को छोड़ बाकी साधाहरण ही है। रंजीत बारोट ने बैगराउंड म्यूजिक को कुछ गुस्ताव संताओलाला (धोबी घाट) मार्का बनाने कि कोशिश कि है, जिसमे वो आंशिक रूप से सफल भी हुए हैं।


बोनी कपूर के साहबजादे अर्जुन कपूर कि ये पहली फिल्म है और उम्मीद कि जा सकती है कि उनको और फिल्में मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी लिहाजा वो अभिनय और संवाद अदायगी आने वाले कुछ दिनों में सीख भी लेंगे। जो उन्होंने अच्छे से सीखा है वो है डांस।
परिणिति चोपरा ने अपने अभिनय से पात्र को और मज़बूत किया है और उनके चहरे पर जबरदस्त आत्मविश्वास है। परिणिति का अभिनय पूरी फिल्म में अर्जुन पर भारी रहता है। बस अब इंतज़ार है कि परिणिति अपने “दिल्ली वाली” छवि से बहार आये। गौहर खान ने एक कोठेवाली कि भूमिका में अच्छा अभिनय किया है, हाँ उनके पास २ आइटम नंबर है और सोने का दिल भी ।


इशकजादे मूलत: एक प्रेमकहानी है, जिससे दर्शक कुछ भी मिलने कि उम्मीद ना करें अलबत्ता युवाओं के एक वर्ग विशेष को ये फिल्म पसंद भी आ सकती है। फिल्म में चलने वाली हज़ारो उद्देश्य-हीन और लक्ष्य-विहीन गोलियों कि तरह ही ये फिल्म भी लक्ष्य-विहीन ही है।
** Star

No comments:

Post a Comment