रुस्तम -ए - हिंद
तुम कहाँ के अमिताभ बच्चन हो?
बड़ी हेमा मालिनी बन रही है ...
ज्यादा दारा सिंह मत बनो...
ये है भारत के हर कोने में बोले जाने
वाले जुमले।
बचपन में दारा सिंह और जापान के एक
पहलवान के बीच देखी गयी कुश्ती बहुत सालो तक मेरी जिंदगी कि सबसे रोमांचक घटना थी। वो भी तब जबकि हमने ये कुश्ती करीब ५०
मीटर कि दूरी से देखा था जोकि सिर्फ १ मिनट से भी कम समय चली थी।
उसके बाद दारा सिंह जब भी जिंदगी में आये टीवी के रास्ते
हनुमान बन के ही आये।
१९ वर्ष कि आयु में सिंगापोर रवाना होने
से पहले दारा सिंह राजाओं और महराजाओ के अखाडों में हाँथ अजमा रहे थे जैसा कि उस
वक्त रिवाज़ भी था। १९४७ में
कुआलालम्पुर में मलेशिया चैम्पियन के बाद १९५२ तक दारा सिंह ने करीब करीब आधी
दुनिया का चक्कर लगाया और जीत हासिल कि।
रुस्तम-ए-ज़माना गामा पहलवान के बाद रुस्तम-ए-हिंद दारा सिंह
ने ही भारत में कुश्ती में सबसे ज्यादा नाम कमाया। ये नाम दारा सिंह
के फिल्मो में आ जाने के वजह से और भी घर घर पहुँच गया।
दारा सिंह हिंदी फिल्मो के पहले रजनीकान्त थे और पहले सलमान
खान भी।
असंभव को बांय हाँथ का खेल समझना और इसलिए सलमान खान की तरह शर्ट उतारे बिना दारा सिंह का भी काम नहीं चलता था। “सिक्स पैक एब्स” से बहुत पहले दारा सिंह के पास “एट पैक एब्स” था। वे सही मायने में हिंदी फिल्मो के पहले
एक्शन हीरो थे।
मुमताज़ के साथ उन्होंने १६ फिल्मों में काम किया जिसमे से
१० फिल्मे बॉक्स-ऑफिस पर जबरदस्त सफल रही।
भारत में ताकत कि परिभाषा बन चुके दारा सिंह का नाम शायद ही
कभी कोई भूल पाए।
अमृतसर पंजाब से शुरू हुआ सफर आज मुंबई में खतम हुआ। इस सफर की सफलता
शायद इसी बात पर निर्भर थी कि..
“मर्द को दर्द नहीं
होता”
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