Pages

Sunday, June 17, 2012

फेरारी की सवारी


Ferrari Ki Sawaari Review

फेरारी की सवारी 
3 Star (***)


जहा एक ओर राऊडी राठोर जैसी फिल्मे सफलता कि गारंटी बनती जा रही हैं वही ये देखना काफी सुखद है कि इस गारंटी वाले फार्मूले के बाहर भी कुछ लोग प्रयास कर रहे हैं फेरारी कि सवारी ऐसा ही एक प्रयास है

ये दो पिता, दो बेटों और एक दादा-पोते कि कहानी है रूसी (शर्मन जोशी) जो एक सरकारी दफ्तर में हेड क्लर्क है वो अपने पिता देबू (बमन इरानी) और बेटे कायो (रित्विक सहोरे) के साथ रहता है और अपने बेटे को इंडिया के क्रिकेट टीम में खेलते देखना चाहता है और इसके लिए कोई भी क़ुरबानी देने को तैयार है वही रुसी का पिता देबू अपने पोते को एक क्रिकेटर बनाने के पक्ष में नहीं है और इस विरोध का उसके पास अपने कारण है ना चाहते हुए भी हो गयी एक घटना के फलस्वरूप रुसी के पास सचिन तेंदुलकर कि फेरारी आ गयी है, जो उसने चोरी कि है अब एक ओर जहाँ इस फेरारी कि खोज चल रही है वही रुसी इस कार से किसी तरह अपना पीछा छुडाना चाहता है अब फिल्म में ये देखना है कि किस किस ने कब कब फेरारी कि सवारी की? और ये वापस सचिन के पास पहुंची या नहीं?

राजू हिरानी ने इस फिल्म कि कहानी लिखी है और इसका स्क्रीनप्ले लिखा है विनोद चोपरा और फिल्म के निर्देशक राजेश मपुस्कर ने कहानी में एक नयापन तो है लेकिन फिल्म कही न कही 1948 में प्रदर्शित इटालियन फिल्म बाइसिकल थीफ्स से प्रभावित है हालाँकि राजू हिरानी ने कहानी को पूरी तरह खुद में ढाल लिया है उनके लिखे संवाद फिल्म कि जान हैं और आपको हसाने में पूरी तरह सक्षम हैं फिल्म का कमज़ोर पक्ष ये है कि फिल्म जिन आदर्शो और मूल्यों के लिए ये आगे बढती है निर्देशक वो स्थापित करने में असफल रहे हैं फिल्म कि लम्बाई भी थोड़ा कम कि जा सकती थी वही ये भी कहना होगा कि रूसी जैसे ईमानदार व्यक्ति को ऐसी किसी गलती को करने के लिए थोडी बड़ी वजह चाहिए

निर्देशक राजेश मापुस्कर ने इस फिल्म से पहले लगे रहो मुन्ना भाई और 3 इडियट्स में एसोसिएट डिरेक्टर के रूप में काम किया है और इस फिल्म में भी उन्होंने अपना काम अच्छे से किया है हाँ जैसा मैंने पहले कहा फिल्म थोड़ा लंबी है और इंटरवल के बाद काफी धीमे भी हो जाती है सचिन का फिल्म में होना ना होना जितना फिल्म के रिलीज़ के पहले रहस्य था उतना ही रहस्य निर्देशक फिल्म में भी बनाए रखने में सफल रहे हैं
अभिनय कि द्रष्टि से रित्विक सहोरे ने अपना काम ठीक किया है बमन इरानी से ऐसे ही अभिनय कि उम्मीद थी शर्मन जोशी एकदम रुसी ही लगते हैं लेकिन कुछ समय के बाद उनका जरूरत से ज्यादा और बेवजह भोला बनना और दिखने का प्रयास करना उतना अच्छा नहीं लगता जितना शुरू में लगा परेश रावल एक छोटे से रोल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं दीपक शिर्के, सत्यदीप मिश्रा, आकाश दाभाडे और नीलेश दिवेकर सब ने अपने काम को अच्छे से किया है
बतौर आईटम गर्ल एक गाने में लावनी करते हुई विद्या बालन पूरे कपड़े पहनी हुई सिल्क स्मिता ही लगती हैं
फिल्म का संगीत बस ठीक ठाक ही है
अंत में बस इतना ही कि फादर्स डे के मौके पर रिलीज़ हुई इस फिल्म से ना सिर्फ माता-पिता बल्कि फिल्म निर्माताओं को भी ये समझना होगा कि बच्चो को प्यार से पालना और सही तरीके से पालना दो अलग बातें हैं

No comments:

Post a Comment