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Saturday, June 2, 2012

Rowdy Rathore




राउडी राठोर


1.5 Star / 5
दबंग और सिंघम जैसी फिल्मो के हिट होने के बाद राउडी राठौर का बनना लाज़मी हो जाता है अब चूंकि एक क़ानून सा लागू हो चुका है कि ऐसी फिल्मों के लिए अगर हमने कोई सवाल पूछा तो गलती हमारी है जो भी परोसा गया है उसको भरपेट खाईये जब सवाल पूछने पर ही पाबन्दी हो "क्युकी फिल्मे मनोरंजन के लिए बनायी जाती है", इस लिहाज़ से ऐसी फिल्मों की समीक्षा में सिर्फ इतना बताना चाहिए कि फिल्म में कितनी हिंसा, सेक्स और बेवजह कॉमेडी है

            तो चलिए फिल्म कि कहानी तलाशने कि कोशिश करते हैं।

क्या कहा??

कहानी???

डोंट एंग्री मी!!!


शिवा (अक्षय कुमार) मुंबई में रहने वाला एक चोर है जो पटना से मुंबई घूमने आई एक लड़की प्रिया (सोनाक्षी सिन्हा) से प्यार करने लगता है। इस प्यार कि शुरुआत में इन दोनों को दो गाने भी गाने को मिलते हैं, लेकिन अचानक ही शिवा को एक छोटी बच्ची मिलती है जो उसे अपना पिता समझती है। अब ना सिर्फ शिवा को ये पता लगाना है कि ये बच्ची कौन है बल्कि उसके पीछे बिहार से आये हुए सैकड़ो गुंडे भी लगे हैं जो शिवा को विक्रम राठोर समझते हैं और उसे जान से मार देना चाहते हैं। इधर प्रिया भी शिवा से नाराज़ वापस जा चुकी है। अब आगे क्या होगा यहाँ तक कि कैसे होगा इसे भी आपके लिए समझना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। लेकिन बेहतर होगा अगर इसका पता आप खुद लगाए।


राउडी राठोर तमिल फिल्म विक्रमार्कूडू कि रीमेक है। जैसा मैंने पहले भी कहा कि फिल्म इडस्ट्री में ये क़ानून पास हो गया है कि अगर फिल्म में पैसा कमाने कि कुव्वत है तो फिर पठकथा और कहानी जैसे बेकार कि बातों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता तो पठकथा में उठाये जाने वाले सवालों को हम नहीं उठाते। अब प्रभुदेवा जो इस फिल्म के निर्देशक है उनके लिए ये कहा जा सकता है कि दक्षिण भारतीय फ़िल्मी फार्मूले का उन्होंने हिंदी फिल्मों में भरपूर प्रयोग किया है।


क्युकी फिल्म पूरी तरह से अक्षय कुमार के कंधो पर है, इसलिए फिल्म को उठाने के लिए दो-दो अक्षय कुमार कि जरूरत पड़ी, और उन्होंने इसे बखूबी उठाया भी। सात साल बाद एक्शन फिल्मो में वापसी के लिए अक्षय जैसे कलाकार के लिए फिल्म के एक्शन सीन एकदम उपयुक्त है। अक्षय कुमार के लिए आज भी ये कहना मुश्किल है कि वो एक्शन या कॉमेडी किसमे ज्यादा बेहतर हैं।

सोनाक्षी सिन्हा खूबसूरत लगी हैं और इसलिए वो फिल्म में हैं भी। जो कुछ लाइन्स बोलने के लिए उनके हिस्से में आयी, उसके साथ भी सोनाक्षी ने बड़ा बुरा सुलूक किया। उनकी अभिनय क्षमता को परखने के लिए कुछ और इंतज़ार करना होगा। हाँ अगर हिंदी फिल्मों ने उन्हें खामोश बोल दिया तो दक्षिण भारतीय फिल्मों में उनका जरूर स्वागत होगा।


साजिद-वाजिद का संगीत चलताऊ किस्म का है जो सफर के दौरान अच्छा लगता है खासकर जब म्यूजिक सिस्टम का कण्ट्रोल आप के पास ना हो। गानों का फिल्मांकन काफी अच्छा है। सरोज खान, प्रभुदेवा और बोस्को कि कोरियोग्राफी अच्छी है।

जहां एक्शन सीन कि तारीफ़ कि जानी चाहिए वही ये भी जरूर कहना होगा कि फिल्म हिंसा से भरी हुई है और फिल्म को निश्चित तौर से UA कि जगह A सर्टिफिकेट मिलना चाहिए था।

अंत में बस इतना कि अगर आप सिंघम कि तरह दबंग है तो इस राउडी पर भी पैसा फेंका जा सकता है।



1 comment:

  1. ek bore film ka jabardast lively review pad kar maza aa gaya. very apt review. thank you ambar ji !

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