
नए हिन्दुस्तान कि जनता के एक
बड़े वर्ग को हमेशा ही एक राकस्टार कि जरूरत रही लेकिन बाकि सभी अधूरे सपनो के तरह
इस ख्वाब को किसी हिन्दुस्तानी फिल्म ने पूरा नहीं किया. लन्दन-ड्रीम्स ने जहा
निराश किया वही राक-ऑन का प्रभाव भी सीमित था.
और अब राक-स्टार...
पता है... यहाँ से बहुत दूर,
गलत और सही के पार,
एक मैदान है,
मैं वहाँ मिलूँगा तुझे...
ये बड़ा जानवर है, छोटे पिंजरे
में नहीं समाएगा .
राकस्टार इन दो संवादों के बीच
कि कहानी है.
ये कहानी है जनार्दन जाखर
(रनबीर कपूर) कि जो दिल्ली के आम मध्यमवर्गीय परिवार से है और अपने आदर्श ‘जिम मोर्रिसन’ कि तरह एक राकस्टार बनना चाहता है. जहा जनार्दन के इस ख्वाब का आमतौर पर
उसके दोस्तों द्वारा मजाक उडाया जाता है वही कॉलेज कैंटीन के मालिक खटाना (कुमुद
मिश्रा) ही उसके ख्यालो से थोडा सहानुभूति रखता है. खटाना, जनार्दन को सलाह देता
है कि एक बड़ा कलाकार बनने के लिए दिल का टूटना जरूरी है, राकस्टार बनने कि चाह में
अब जनार्दन को अपना दिल तोडना है. जनार्दन अपना दिल तोड़ने के लिए हीर कौल (नरगिस फाकिरी) को चुनता हैं, जो
जनार्दन के कॉलेज कि एक ख़ूबसूरत सी लड़की है और जनार्दन जैसे किसी भी लड़के के पहुँच
से बाहर है और इसलिए वो जनार्दन का दिल तोड़ने के लिए बिलकुल उपयुक्त है. एक
ग़लतफ़हमी दूर होने के बाद जनार्दन और हीर जल्दी ही अच्छे दोस्त बन जाते हैं. दोनों
के बीच कि दोस्ती में पनप रहे प्यार का अहसास हीर को होता है लेकिन वो इसका इज़हार
कर सके इसके पहले ही हीर कि शादी हो जाती है और वो प्राग (Czech Republic) चली जाती है. इसी बीच जनार्दन को उसके अपने घर वाले चोरी का एक झूठा
इलज़ाम लगा के घर से बाहर निकाल देते हैं और जनार्दन दर-दर कि ठोकरे खा रहा है.
अचानक एक दिन किस्मत पलटा खाती है और एक संगीत कंपनी द्वारा न सिर्फ वो अनुबंधित
है बल्कि उसे प्राग जाने का मौका मिलता है! प्राग में जनार्दन धूम मचा रहा है और
अब वो “जोर्डन” है.
निर्देशक इम्तिआज़ अली और
मुआज्ज़म बेग कि लिखी कहानी की पटकथा भी इम्तिआज़ ने ही लिखी है! लेखक ने एक युवा
दिल के विद्रोही स्वभाव और उसके सही और गलत के परे जाने की मानसिकता की सही तरीके
से व्याख्या की है और इसी वजह से कुछ सवालों का अनुत्तरित रह जाना स्वाभाविक है.
लेकिन यही अनुत्तरित सवाल फिल्म की व्यावसायिक सफलता पर असर डाल सकता है . वैसे
विवाहोत्तर बने प्रेमसंबंध की कहानी भारतीय जनता के लिए हमेशा ही सबसे ज्यादा
संवेदनशील विषयों में से एक रही है. महानगरों में रहने वाली “क्रीमी लेयर” और शेष
आम जनता की सोच के बीच आज भी जमीन आसमान का फरक है और इसलिए ऐसे किसी भी संबंध की कहानी को अपनाने के
लिए ‘आम जनता’ को एक विशेष कारण की जरूरत होती है. जो की यहाँ नहीं है. इम्तिआज़ अली के इस फिल्म में भी नायिका को एक
बार फिर अपने प्यार का अहसास तब होता है जब सामाजिक मर्यादा इसकी इजाज़त नहीं देती
है. फिल्म का अंत भी थोडा अनुत्तरित है.
हालाँकि रनबीर के पात्र को बड़ी खूबसूरती से लिखा गया है. साधारण से लड़के से लेकर
एक आक्रामक और कुंठित सफल राकस्टार की यात्रा बखूबी दिखाई गयी है. और हाँ राकस्टार
बन जाने बाद भी वो अपने आदर्श ‘जिम मोरिसन’ की तरह शराब और ड्रग्स में नहीं फंसा हुआ है . इम्तिआज़ अली के लिखे हुए
फिल्म के संवाद जहाँ गंभीर हैं वही दर्शकों को हंसाने में भी सफल रहे हैं.
निर्देशक इम्तिआज़ अली का
निर्देशन हमेशा की तरह अव्वल दर्जे का है . प्रेम-संबंधों को इम्तिआज़ ने हमेशा ही
खूबसूरती से निभाने का प्रयास किया है जिसमे वो हमेशा ही सफल रहे है. बल्कि मेरे
विचार से इम्तिआज़ अली ने हमेशा ही अपनी बात कहने के लिए प्रेम-संबंधो का सहारा
लिया है .. इसलिए उनकी फिल्में सिर्फ एक प्रेम-कहानी नहीं होती है . यहाँ भी सही-गलत
की मर्यादा से बाहर एक आधुनिक सोच को निर्देशक ने सफलतापूर्वक दिखाया है या यु कहे
की एक युवा “फोल्डर” पर “डबल-क्लिक” मार कर खोल दिया है. और इसकी हर फ़ाइल आप के
सामने आ जायेगी .
सिनेमेटोग्राफर अनिल मेहता ने
एक बार फिर कश्मीर के वही दर्शन कराये जैसे खूबसूरती हम अब सिर्फ किताबों में पढ़
रहे है. प्राग की सडको और स्टेडियम का ऊँचाई से फिल्माया गया द्रश्य बहुत अच्छे
हैं. फिल्म को रोम और हिमाचल में भी फिल्माया गया है.
फिल्म के शुरू होने के कुछ देर
बाद ही आप को अहसास हो जाएगा की फिल्म एक बेहतरीन एडिटर द्वारा एडिट की जा रही है.
और आरती बजाज ने हमेशा की तरह ही बेहतरीन काम किया है. हालाँकि फिल्म की लम्बाई
कुछ ज्यादा है लेकिन ये एडिटर के द्वारा कम नहीं की जा सकती थी, अलबत्ता एडिटर ने
दृश्यों को एक से ज्यादा बार दिखाकर और कई दृश्यों को क्रम से बाहर आगे पीछे करके
रोचकता बनाए रखी है.
सेट डिजाईन और कास्ट्यूमस पर
विशेष ध्यान दिया गया है , अक्की नरूला और मनीष मल्होत्रा के द्वारा डिजाइन किये
गए, रनबीर के कपडे बिलकुल अलग तरीके के हैं और पात्र के चरित्र के साथ मेल खाते
हैं. नर्गिस के कश्मीर में पहने जाने वालो कपड़ो पर भी विशेष ध्यान दिया गया है.
ये फिल्म रनबीर कपूर के
इर्दगिर्द ही घूमती है. रनबीर का ये अभी तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनय है. पहली बार
रनबीर के चहरे पर बदलते हुए कई सारे भाव दिखेंगे जो हमने रनबीर की पिछली फिल्मों
में नहीं देखा है. एक आम लड़के की मासूमियत, राकस्टार का अंदाज़, एक कुंठित सफल
कलाकार सब कुछ रनबीर ने बखूबी किया है, निश्चित ही वो इस साल कई अवार्ड्स के लिए
नामांकित होंगे. नरगिस फाकरी के लिए दो बातों में कोई दो राय नहीं हो सकती, पहली
ये की वे खूबसूरत हैं और दूसरी ये की उन्हें अभिनय की द्रष्टि से अभी बहुत मेहनत
करनी है. गनीमत है की उनकी आवाज़ को डब किया गया है. कुमुद मिश्रा थियेटर के जाने
माने अभिनेता हैं और उन्होंने अच्छा काम किया है . पियूष मिश्रा की उपस्थिति
दर्शकों को हमेशा ही हसाती है एक विशेष द्रश्य में उन्होंने कमाल किया है . शम्मी
कपूर को एक बार फिर बड़े परदे पर देखना सुखद और भावुक है .
फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण पहलू
संगीत है क्युकी ये एक राकस्टार की प्रेम-कहानी है, सो संगीत का महत्व दुगना हो
जाता है. यहाँ फिल्म की समीक्षा के साथ
फिल्म के संगीत की समीक्षा करना इसके संगीत के साथ अन्याय करना होगा. इसकी समीक्षा
अलग से की जानी चाहिए. यहाँ संक्षेप में ये कहा जा सकता है की, ऐ.आर. रहमान का
हालीवुड फिल्मों में व्यस्तता भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए चिंता का विषय बनती
जा रही थी, लेकिन रहमान ने ना सिर्फ एक बेहतरीन संगीत दिया है बल्कि वो फिल्म की
भावना के साथ भी पूरी तरह जाता है. बहुत दिनों बाद आप किसी फिल्म के सभी गानों
सुनना चाहेंगे. मोहित चौहान की आवाज़ उनको प्रतीक्षित सम्मान दिलाएगी . इरशाद कामिल
का लिखा गाना “ साड्डा हक” फिल्म में बहुत खूबी से फिल्माया गया है. रहमान का
संगीत लोकप्रिय होने में थोडा वक्त लेता है और जल्दी ही अपनी ऊंचाईयों को छुएगा.
राकस्टार, प्रेम कहानी में
उतनी सशक्त नहीं है जीतनी एक कलाकार की कहानी में. फिल्म को सभी वर्गों द्वारा
प्रसंशा मिलना मुश्किल ही होगा, हाँ इम्तिआज़ अली का निर्देशन, रनबीर का अभिनए और
फिल्म का एक बड़े कैनवास पर बना होना आप को सिनेमा घर तक ले जाने के लिए काफी है .
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