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Sunday, January 20, 2013

Matru Ki Bijlee Ka Mandola




विशाल भारद्वाज एक बड़े फिल्मकार हैं, और उनकी फिल्मों को देख कर लग रहा है कि जिस कैनवास और मुद्दे कि फिल्म वो बनाना चाह रहे हैं उसके लिए उनकी २ फिल्मों के बीच शायद और ज्यादा वक्त दरकार है
जहां तक कलात्मक स्वतन्त्रता का सवाल है उसकी हद इस बात पर निर्भर करती है कि आप ने इस स्वतन्त्रता का किया क्या? अफ़सोस विशाल ज्यादा कुछ नहीं कर पाए
नेता, पुलिस, अपराधी और उद्योगपतियों का जमावडा कितना घातक हो सकता है, बात यही थी ऐसी बातें हलके फुल्के अंदाज़ में की जाए तभी इसका असर होता है यहाँ तक विशाल का अंदाज़ सही था लेकिन अंदाज़ इतना भी हल्का नहीं होना चाहिए की फिल्म का फुल्का बन के रह जाए
मटरू (इमरान खान) मंडोला का ड्राईवर है और मंडोला की लड़की है बिजली (अनुष्का शर्मा) मंडोला प्रदेश की मुख्यमंत्री देवी (शबाना आज़मी) के साथ सांठ गाँठ करके गाँव के इकोनोमिक जोन वाली ज़मीन पर अपनी फैक्ट्री खोलना चाहता है मंडोला एक शराबी है जो शराब के नशे में एक उदार दिल इंसान बन जाता है और अपने ही खिलाफ गाँव वालो को भड़काता है  
मिलने वाली जायदाद को देखते हुए देवी अपने बेटे बादल (आर्य बब्बर) की शादी बिजली से कराना चाहती है जिसमे मंडोला का भी राजनैतिक फायदा है
इस राजनैतिक खेल में गाँव वालो की ज़मीन हथियाई जा रही है जिसको रोकने के
लिए गाँववालों के साथ माओ है बाज़ी कभी सरकार और कभी गाँव वालो के तरफ आती जाती है
 
अभिषेक चौबे और विशाल भारद्वाज पठकथा लिखने में शायद इस बात पर मात खा गए की फिल्म को किस हद तक गंभीर रखा जाए और किस हद तक कॉमेडी लेकिन गंभीर मुद्दों को कोमेडी में पिरोने का प्रयास सराहनीय था हालांकि फिल्म १९४० के एक नाटक Mr Puntila and his Man Matti से काफी प्रभावित लगती है लेकिन इसमे अभिषेक और विशाल ने अपने रंग भरे हैं
जहां तक निर्देशन का सवाल है विशाल अपने तरह के अकेले ही निर्देशक हैं और वो बतौर निर्देशक अपने स्तर का अहसास करा ही देते हैं हालांकि इस बार हरियाणा की प्रष्ठभूमि थी लेकिन उन्होंने संवादों को गालियों से बचाया और साथ साथ शब्दों का बड़ा ही अच्छा उपयोग भी किया है जैसे भाग झोपड़े से आंधी आयी
बतौर संगीत निर्देशक विशाल भारद्वाज ने कई रंग भरे हैं, गीत के बोल सुनकर ही पहचाना जा सकता है की ये काम गुलज़ार का है
कार्तिक विजय की सिनेमेटोग्राफी एवं श्रीकर प्रसाद की एडिटिंग अच्छी है


अभिनय की द्रष्टि से फिल्म पूरी तरह पंकज कपूर के ही इर्द गिर्द घूमती है, पंकज कपूर ने अच्छा अभिनय किया है और इससे कम की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है शबाना आज़मी ने अपनी स्तर का काम किया है और एक दो दृश्यों में उन्होंने कमाल ही किया है लेकिन ये कहना होगा की इमरान खान का ये अभी तक का सबसे उम्दा अभिनय है विशाल ने ये बात का ख्याल बराबर रखा है की इमरान को कितनी ढील देनी है अनुष्का अपने कम्फर्ट ज़ोन में हैं,  उन्होंने जो पहली फिल्म में किया था, और जो पिछली फिल्म में किया था, और जो इन दोनों फिल्मों के बीच में किया था, वही उन्होंने इस फिल्म में भी किया है।  अभी तक उनके अभिनय में कोई दूसरा रंग देखने को नहीं मिला है आर्या बब्बर भी फिल्म में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं
फिल्म एक बार देखे जाने के काबिल है और हर किसी के लिए नहीं है इस बात का भी सुकून है की विशाल जैसे निर्देशक आज भी सौ करोड के रेस में नहीं हैं इसलिए अच्छी फिल्मों की उम्मीद बराबर की जा सकती है
एक आखिरी सवाल कही फिल्म ये तो नहीं कहती कि माओ सचमुच किसानो का दोस्त है??
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