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Monday, September 17, 2012

सुर-क्षेत्र : भारत-पाकिस्तान?


पिछले सात-आठ सालों से भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच अब वो सनसनी नहीं पैदा करता जो कभी किया करता था, अब उस जगह पर आस्ट्रेलिया आ चुका है लेकिन क्या आस्ट्रेलिया ने वो मरने मारने वाली बात पैदा की?... शायद नहीं ये एक अच्छी बात है लेकिन शायद बाजार के लिए ये अच्छी बात ना हो एक दूसरे को हराने की भावना दोनों ही देशों में है लेकिन शायद पाकिस्तान में ज्यादा क्योंकी पाकिस्तान की हर बात भारत केंद्रित ही होती है, वंहा हर अच्छी और बुरी बात के लिए भारत का ही उदाहरण दिया जाता है इसी भावना की वजह से भारत-पाकिस्तान का मैच हर किसी के लिए (खिलाड़ियों के लिए भी) पैसा कमाने की गारंटी था और आज भी है एक दूसरे को हराने की भावना शायद थोड़ा कम हो गयी हो लेकिन इतनी तो हमेशा ही रहेगी, की इसका जम के फायदा उठाया जाए, और अब यही फायदा उठाने की बारी है सुर-क्षेत्र कार्यक्रम की जो कलर्स चैनल की नयी पेशकश है, इसके निर्माता है बोनी कपूर और निर्देशक हैं सारेगामा और अन्ताक्षरी वाले गजेन्द्र सिंह

मज़े की बात ये है की प्रोग्राम अमन की आशा में बनाया गया है लेकिन भुनाया वही जा रहा है जिसकी वजह से अमन नहीं है प्रोग्राम की टीआरपी इसी में है की शो के दरमियान बिलकुल भी अमन ना रहे कहने का मतलब है की दोनों देशों के बीच जो भी थोड़ा बहुत अमन है उसमे ऐसे प्रोग्राम नुकसान ही पहुंचाते हैं
एक और बात की आशा भोंसले को इस पैसा कमाने वाले खेल में अपनी गरिमा का ख्याल रखना चाहिए, क्योंकी आतिफ असलम से सुरों के लिए बहस करने में उनको बहुत नीचे उतरना होगा

अब सबसे बड़ा सवाल की अपने फायदे और पैसा कमाने के लिए किसी भी कलर्स, बोनी कपूर या गजेन्द्र सिंह को भारत के नाम का दुरूपयोग करने कि इजाज़त किसने दी? हिमेश और आतिफ की टीम का नाम भारत-पकिस्तान कैसे हो सकता है? हमारा प्रतिनिधित्व वो क्यों करे जिसे हमने चुना ही नहीं?

ये इसलिए मुमकिन है क्योंकी लोकतंत्र में रहते हुए भी, हमें आदत है बीसीसीआई की टीम को इंडिया की टीम मानने की, माल्या और अम्बानी के खरीदे हुए लोगो को बंगलौर और मुंबई कहने की, फेमिना की प्रतियोगी को मिस इंडिया कहने की, मिस वर्ल्ड मानने की, इस बात से बेखबर की उनकी जीत किस तरह का और कितना बदलाव समाज और बाज़ार में ला सकता है
हमको चुनने और हटाने का अधिकार है

Saturday, September 15, 2012

KBC : बनता बिगड़ता स्वरुप




सन 2000 से शुरू होकर के.बी.सी. ने हर बार टीआरपी के अपने ही रेकोर्डस तोड़े हैं दूसरे देशो में इस शो को मिली सफलता से मैं उतना अवगत नहीं हूँ फिर भी ये अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत में इस शो को मिली सफलता अभूतपूर्व है जिसकी सबसे बड़ी वजह अमिताभ बच्चन ही हैं और शायद ही किसी भी देश में इसको होस्ट करने वाला शख्स अमिताभ बच्चन की ऊंचाईयों का रहा हो
अमिताभ बच्चन का केबीसी को करना एक संयोग ही था, क्यूँकी उस वक्त फ़िल्मी सितारों के लिए टीवी में काम करना उनको फिल्मों में काम ना मिलने का संकेत होता था लेकिन अमिताभ की मजबूरी और हमेशा नए प्रयोग करने कि उनकी सोच ने भारतीय दर्शकों को एक गजब का शो दे दिया
अमिताभ बच्चन कि भाषा शैली और उनका व्यक्तित्व पूरी तरह से इस शो की आत्मा के साथ है और फिर खुद ... अमिताभ बच्चन हालांकि शाहरुख ने भी शो को होस्ट किया लेकिन वो बात नहीं आ पायी क्योंकी अमिताभ पहले ही इस शो मापदंड तय कर चुके था हालाँकि शाहरुख ने भी शो में कुछ नया जोड़ने की कोशिश जरूर की, लेकिन शायद वो इस शो के लिए बेहतर पसंद थे ही नहीं, ठीक वैसे ही जैसे अमिताभ बिग-बॉस के लिए नहीं थे


पिछले दो सीजन में केबीसी की टीआरपी जरूर बढ़ी है लेकिन शायद शो को सर्वाधिक पसंद करने वालों के वर्ग में बदलाव जरूर आया है जो लोग सिर्फ सवाल जवाब मे रूचि रखते हैं उनके लिए शो का नया फार्मेट थोड़ा खिजाने वाला है आप जो देखना चाहते हैं उसके लिए आपको नाहक ही इन्तज़ार करना पड़ता है, अमिताभ को पूछे जाने वाले सवाल अमिताभ को कम कुछ दर्शकों को ज्यादा परेशान करते हैं शो का ड्रामा मानो बालाजी टेलीफिल्म्स ने ही निर्देशित किया हो और ये सब हो रहा है उस दर्शक वर्ग को लुभाने के लिए जो केबीसी से ज्यादा आनंदी के भविष्य के लिए परेशान हो तो शायद अब घरों में चैनल बदलने की लड़ाई ना हो अब अपनी अपनी नापसंद के द्रश्यों के वक्त किसी को फोन किया जा सकता है या रसोई में जा कर गैस धीमे की जा सकती है


एक और बात जो आप को शो में हिस्सा लेने के लिए फोन करने से रोकती है वो ये की अगर बुलावा आ गया तो एक दुःख-भरी कहानी भी होना चाहिए मैंने लाख ड्रामा जोड़ने की कोशिश की अपनी जिंदगी में लेकिन ऐसा दुःख नहीं था जो केबीसी में जा के सुनाया जा सके सो फोन करना बंद

अब अस्सी प्रतिशत प्रतियोगियों का ठीक ठाक रकम जीतना भी शो कि सच्चाई को शक के दायरे में खड़ा करता है वही ऑडिइंस पोल जैसी लाइफ लाइन अब खुल के सामने आ चुकी हैं

तो ये शो स्क्रिप्टेड है इसमे कोई शक नहीं लेकिन इसमे अच्छी बात ये है कि ये गरीब और जरूरतमंदों के हित में है आप किसी का भला करके पैसे कमाए इसमे किसी को कोई आपत्ती नहीं होनी चाहिए हाँ ये जरूर है की जिन लोगो में शो के प्रति रूचि उसकी मूल-भावना को लेके थी, उनको निराशा ही होगी

Monday, September 10, 2012

RAAZ : अर्नब के राज़ में - Arnab's Journalism





पाकिस्तान के हवाले से मीडिया का एक सच सामने आया जिस पर सियासी महकमों और मीडिया पर भरपूर बात और जम के छीछालेदर की गयी बात कोर्ट तक भी गयी और जज ने प्रोग्राम के फुटेज भी मंगा के देखे हुआ कुछ यूँ की पाकिस्तान के एक टीवी चैनल में प्रतिष्ठित पत्रकार मेहर बुखारी और मुबाशिर लुकमान एक सियासी पार्टी के नुमाईंदे मालिक रियाज़ को इंटरव्यू कर रहे थे और प्रोग्राम में लिए जाने वाले ब्रेक के दौरान होस्ट और गेस्ट के बीच होने वाली बातों का फुटेज लीक हो गया इस फुटेज में काबिल-ए-गौर बात ये है कि नेता किस तरह मीडिया का जम के दुरपयोग कर रहे हैं और टीआरपी की दौड में बने रहने के लिए कुछ चैनल किस तरह अपना दुरपयोग करा रहे हैं





पिछले दिनों अर्नब गोस्वामी ने राज ठाकरे का इंटरव्यू लिया जो इस मायने में काफी महत्व रखता है कि राज ने अपनी पार्टी बनाने के बाद पहली बार कोई इंटरव्यू हिंदी में दिया राज ठाकरे हिंदी न्यूज़ चैनल्स का अपने खिलाफ चलाये जा रहे दुष्प्रचार के खिलाफ बोलना चाहते थे, जो एक हद तक सही भी है राज ठाकरे, जैसा कि उन्होंने दावा किया, महाराष्ट्र के बाहर की राजनीति नहीं करना चाहते तो फिर ये सफायी आखिरकार थी किस जनता के लिए? 
राज को अपने चाचा से विरासत में ना सिर्फ सोचने का तरीका मिला है बल्कि बोलने का भी दूसरी तरफ अर्नब गोस्वामी की बात की जाए तो राज के इंटरव्यू से पहले उन्हें देखने पर यही लगता था की उन्हें दूसरों का बोलना पसंद नहीं इसीलिए वो अपने चैनल में आये मेहमानों के स्वागत में उन्हें सिर्फ सवाल सुनने की ही जहमत उठाने देते थे.. जवाब वो खुद ही देते हैं लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ अर्नब कि, जवाब तो दूर आप सवाल भी नहीं पूछ पाए?

जनता कि तरफ से सवाल पूछने का बीड़ा उठाने वाले अर्नब गोस्वामी ने तर्क वितर्क का अभिनय तो ठीक किया लेकिन संविधान और क़ानून व्यवस्था के पक्ष में बोलने के लिए भी उनके के पास तर्क नहीं थे? लेकिन अर्नब के सवाल जवाब के इतिहास को देखा जाए तो शायद ही कोई अर्नब के सामने बैठ कर २० सेकंड से ज्यादा एक बार में बोल पाया हो फिर अचानक ये ब्लडप्रेशर डाउन क्यों? (राज के सामने अर्नब काफी थके नज़र आ रहे थे)

तो क्यों ना माना जाए की ये वही तिकडम थी जो हमने पाकिस्तानी चैनल में होती देखी क्युकी ये पहला मौक़ा नहीं जब टीआरपी के लिए अर्नब ने ऐसी चाल चली हो.. यही खूबसूरत अभिनय वो नरेन्द्र मोदी के साथ भी कर चुके हैं मज़े की बात है कि अर्नब सफल हुए और राज के इंटरव्यू को काफी टीआरपी मिली
अर्नब की सफलता ने एक पीड़ित व्यक्ति को ये बताया कि उस पर हो रहा अत्याचार क्यों सही है

Tuesday, May 8, 2012

Aamir khan aur satyamev jayate


आमिर खान और सत्यमेव जयते 




बचपन में मैं जिन व्यक्तियों से प्रभावित था उसकी एक लंबी फेहरिस्त होती थी, जो पृथ्वीराज चौहान से लेकर महात्मा गाँधी, वीर सावरकर से लेकर इंदिरा गाँधी, कपिल देव और गावस्कर से होती हुई अमिताभ बच्चन तक आती थी, यहाँ तक कि बाल ठाकरे भी इस लिस्ट में आकर गौरवान्वित हो चुके हैं। जैसे जैसे उम्र बढती गयी लिस्ट छोटी होती गयी, एक समय ऐसा भी आया कि लिस्ट को भरने के लिए तरसना पड़ गया और लोगो कि खोज भी कि गयी। लिस्ट के छोटे होते जाने का मूल कारण ये समझ में आ जाना  था कि, किस व्यक्ति ने अपने पद का कितना दुरूपयोग किया, कितना उपयोग किया और कितना उपयोग नहीं किया।


और शायद आज भी देश कि बड़ी समस्या ये नहीं कि प्रभावशाली लोग अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं, ज्यादा बड़ी समस्या ये है कि कुछ प्रभावशाली लोग अपने पद का वो सदुपयोग नहीं कर रहे हैं जो कई दुरुपयोगो पर भारी पड़ सकता है।


महानायक अमिताभ किसी भी समस्या में बोलने वाले आखिरी व्यक्ति है, यहाँ तक कि बोफोर्स पर भी न बोले, जब भी मुह खुला तो क्रीम, बीमा, तेल और गुजरात में दिन गुजारने के लिए ही आवाज़ निकली। फिल्मों के बादशाह खान जो प्रवासी भारतियों को डालर सिनेमा बेचकर तिजोरियां भर रहे हैं उन्ही प्रवासियों को गोरे होने के तरीके सिखाने लगे। भगवान का हाल ये है कि लोग तो ATM से पैसा निकालते हैं लेकिन अगर गलती से ATM में पैसा डाल दो तो सचिन बाहर आ जाएँ।


लेकिन पैसा तो हम सभी को अपने कामों के लिए मिल रहा है, और ये भी जरूरी नहीं कि हम अपना काम छोड़ समाज सेवा में लग जाए। लेकिन कौन सा ऐसा काम है जिसको करते हुए समाज में बदलाव नहीं लाया जा सकता या समाज सेवा नहीं कि जा सकती। बस करना ये होगा कि अपना काम इमानदारी से करो।

और बस यही पर आमिर खान बाकि दूसरे सेलिब्रिटीस से अलग नज़र आते हैं। उन्होंने हमेशा ही अपने दायित्व को पहचाना है और समय समय पर अपने काम में समाज के लिए एक सन्देश दिया है। सत्यमेव जयते उसी कड़ी कि नयी पेशकश है। इस कार्यक्रम में समस्याओं को संक्षेप में और बड़े ही सटीक तरीके से रखा गया। शो का रिसर्च बहुत ही आला दर्जे का है, अच्छी बात है आमिर बहुत ही आम तरीके से पेश आये जैसे वो कोई बड़े सितरा हो ही ना, वरना बड़े लोग हमेशा ही छोटो से विनम्रता से यूँ मिलते हैं कि छोटो को ये अहसास बराबर रहे कि “ये साहब कि महानता है जो विनम्र हैं” । पहले एपिसोड में ही संजीदगी दिखाई दे गयी कि ये एक ईमानदार कोशिश है ।


एक समस्या के करीब करीब सभी पहलुओं को दिखाया गया, आंकड़ों को विशेष तरीके से बताया जाना और प्रभाव छोडता है। शो में अदालत में फैसला काफी अर्से से लंबित होने के बाद भी अदालत पर भरोसा बनाये जाने पर जोर दिया गया। ऐसे उदाहरण भी दिखाए गए जहा से आशा कि किरण फूटती है और बदलाव का विश्वास पैदा होता है। शो कि एडिटिंग और स्पीड भी अच्छी थी, आमिर जैसे सितारे कि उपस्थिति में ज्यादातर रिएक्शन वहां मौजूद दर्शकों के ही दिखाए गए। एक निहायत ही भावुक विषय पर जबरन रुलाने कि कोशिश नहीं कि गयी (बैगराऊन्ड में दर्दीला वाइलिन बजाकर) इसीलिए भावुकता चरम पर थी। अब कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि आमिर कोई समाज सेवा नहीं कर रहे उनको इस बात के लिए पैसे मिल रहे हैं। भला इसमे क्या शक है? बल्कि इतने पैसे मिल रहे है जितना पहले किसी को टीवी पर नहीं मिले.. क्यों?? आमिर ज्यादा पैसे लेकर शो कर रहे हैं ऐसा नहीं बल्कि जो शो वो कर रहे हैं .. उसको इमानदारी से करने में इतने ही पैसे मिलेंगे और मिलने चाहिए। 
आमिर अपनी “ब्रांड वैल्यू” भुना रहे हैं...??? जी हाँ बिलकुल, लेकिन ये हुंडी भुनाने से पहले आप को ब्रांड बनना होगा.. जनता का विश्वास जीतना होगा.. हमेशा ही उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना होगा । फिर आप को ज्यादा पैसे मिलने पर जनता खुश होगी। 

लेकिन क्या सत्यमेव जयते समाज में कोई बदलाव ला सकता है। जब समाज में टीवी शो, कशिश चूड़ी, कुमकुम साडी जैसी ढेरो चीज़ ला सकते हैं, राम और प्रिया कपूर के शादी की चिंता की जा सकती है, तो कम से कम सत्यमेव जयते के बाद बात तो कि ही जा सकती है। हाँ ये पक्का है कि ऐसे हज़ारो शो भी कई लोगो कि जिंदगी में कोई बदलाव कभी नहीं ला सकते, और ये शो उनके लिए है भी नहीं। ऐसे प्रयास उन लोगो के लिए ही होते हैं जो शायद परिवर्तन के कागार पर ही खड़े हैं.. और इससे ज्यादा कि उम्मीद कि भी नहीं जानी चाहिए... क्युकी आप कन्या भ्रूण ह्त्या पर एपिसोड देखकर रेड सिग्नल तोडना बंद कर दे, वो काफी होगा। 


हमे याद रखना चाहिए कि शो का मकसद सिर्फ ये बताना है कि सरकार के पास इसको खतम करने कि एक नीति है जिसका पालन अच्छे से नहीं हो रहा है और वो इसलिए नहीं हो रहा है क्युकी हम वोट इन मुद्दों पर नहीं डालते, इसलिए इसको खतम भी हमी कर सकते हैं.. आमिर खान जाके खतम करेंगे ऐसा नहीं है। ये उम्मीद कि जानी चाहिए कि ऐसे एपिसोड्स के बाद जिसे समस्या का पता नहीं उसको पता चलेगा... जिसे पता है वो एक बार और सोचेगा.. जो सोच रहा था वो एक कदम उठाएगा.. जिसने एक असफल कदम उठाया था वो एक और कदम उठाएगा.. जिसने एक सफल कदम उठाया था उसको हौसला मिलेगा... और परिवर्तन होगा। 


त्यमेव जयते !!!