पहला सवाल तो ये कि गणतंत्र दिवस के 65वीं सालगिरह पर सारे टीवी समाचार चैनल, सिनेमा के 65 साल क्यों दिखा रहे थे?? खैर टीवी के विषय में ज्यादा सवाल करना खुद के सोचने और समझने की शक्ती पर सवाल खड़ा कर सकता है।
इसी सन्दर्भ में सिनेमा के 60 साल पूरे होने पर एक पाठक वीरेन्द्र सिंह ने हनुमान चालीसा के तर्ज़ पर सिनेमा चालीसा लिखी (फिल्म पत्रिका माधुरी में)। आज 40 साल के बाद सौ साल पूरे होने पर इस रचना में और कितने नाम जोड़े जा सकते हैं?
दोहा: सहगल चरण स्पर्श कर, नित्य करूँ मधुपान
सुमिरौं प्रतिपल बिमल दा निर्देशन के प्राण
स्वयं को काबिल मानि कै, सुमिरौ शांताराम
ख्याति प्राप्त अतुलित करूँ, देहु फिलम में काम
चौपाई: जय जय श्री रामानंद सागर, सत्यजीत संसार उजागर
दारासिंग अतुलित बलधामा, रंधावा जेहि भ्राता नामा
दिलीप 'संघर्ष' में बन बजरंगी, प्यार करै वैजयंती संगी
मृदुल कंठ के धनी मुकेशा, विजय आनंद के कुंचित केशा।
विद्यावान गुनी अति जौहर, 'बांगला देश' दिखाए जौहर
हेलन सुंदर नृत्य दिखावा, लता कर्णप्रिय गीत सुनावा
हृषीकेश 'आनंद' मनावें, फिल्मफेयर अवार्ड ले जाएं
राजेश पावैं बहुत बड़ाई, बच्चन की वैल्यू बढ़ जाई
बेदी 'दस्तक' फिलम बनावें, पबलिक से ताली पिटवावें
पृथ्वीराज नाटक चलवाना, राज कपूर को सब जग जाना
शम्मी तुम कपिदल के राजा, तिरछे रोल सकल तुम साजा
हार्कनेस रोड शशि बिराजें, वाम अंग जैनीफर छाजें
अमरोही बनायें 'पाकीजा', लाभ करोड़ों का है कीजा
मनोज कुमार 'उपकार' बनाई, नोट बटोर ख्याति अति पाई
प्राण जो तेज दिखावहिं आपैं, दर्शक सभी हांक ते कांपै
नासैं दुख हरैं सब पीड़ा, परदे पर महमूद जस बीरा
आगा जी फुलझड़ी छुड़ावैं, मुकरी, ओम कहकहे लगावैं
जुवतियों में परताप तुम्हारा, देव आनंद जगत उजियारा
तुमहिं अशोक कला रखवारे, किशोर कुमार संगित दुलारे
राहुल बर्मन नाम कमावें, 'दम मारो दम' मस्त बनावें
नौशादहिं मन को अति भावें, शास्त्रीय संगीत सुनावें
रफी कंठ मृदु तुम्हरे पासा, सादर तुम संगित के दासा
भूत पिशाच निकट पर्दे पर आवें, आदर्शहिं जब फिल्म बनावें
जीवन नारद रोल सुहाएं, दुर्गा, अचला मा बन जाएं
संकट हटे मिटे सब पीड़ा, काम देहु बलदेव चोपड़ा
जय जय जय संजीव गुसाईं, हम बन जाएं आपकी नाईं
हीरो बनना चाहे जोई, 'फिल्म चालीसा' पढ़िबो सोई
एक फिलम जब जुबली करहीं, मानव जनम सफल तब करहीं
बंगला कार, चेरि अरु चेरा, 'फैन मेल' काला धन ढेरा
अच्छे-अच्छे भोजन जीमैं, नित प्रति बढ़िया दारू पीवैं
बंबई बसहिं फिल्म भक्त कहाई, अंत काल हालीवुड जाई
मर्लिन मनरो हत्या करईं, तेहि समाधि जा माला धरईं
दोहा: बहु बिधि साज सिंगार कर, पहिन वस्त्र रंगीन
राखी, हेमा, साधना, हृदय बसहु तुम तीन.
(वीरेन्द्र सिंह गोधरा, 15 सितंबर 1972.)
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