क्या मैं एक Feminist की तरह बोल रही हूँ? लेकिन मुझे तो Feminism की परिभाषा ही नहीं मालूम। फिर भी मुझे
आज़ादी का महत्व मालूम है। कितना आसान है एक औरत की रक्षा करना, लेकिन मुश्किल है
तो उसकी आज़ादी की रक्षा करना...
औरत की रक्षा करने से आसान तो मानो कुछ भी नहीं.. चारदीवारी
में बंद रहो, यहाँ मत जाओ वहा मत जाओ, इससे बात मत करो, बुरखे में रहो, घूंघट में
रहो...और ना जाने क्या क्या..
लेकिन क्या इस सुरक्षा का कोई मतलब है?? ये तो यूँ हुआ की
तुम आराम से इस जेल में बैठो मैं बाहर पहरा देता हूँ ताकि कोई तुम्हारे कोठारी में
आ ना सके...
तो अगर तुम वाकई मेरे रक्षक हो, मेरे निगहबान हो या मेरे
शुभचिंतक हो तो मेरी रक्षा करना छोडो, मेरी आज़ादी कि रक्षा करो। तुम्हे ये जानने
कि जरूरत है कि मैं इस आज़ादी के लिए बहुत कुछ कुर्बान करने को तैयार हूँ लेकिन
मेरी आज़ादी को खुद पर कुर्बान करने को ना कहो।
मुझे उड़ने दो..
मुझे मेरे फैसले खुद करने दो..
मुझे मेरे हिस्से कि गलतियां करने दो..
संभलने के पहले गिरना चाहती हूँ मैं... तुमने भी तो यही
किया था ना? तुमने भी तो यूँ ही सीखा था ना? तो मैं भी सीख जाऊँगी..
और तब मेरा कंधा ना सिर्फ तुम्हारे कंधे के साथ खडा होगा
बल्कि उतना मज़बूत भी होगा।
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